Phonological Study - भाषाशास्त्रीय अध्ययन
बीसवीं शताब्दी में हिन्दी एवं उसकी बोलियों पर कई विद्वानों ने भाषाशास्त्रीय अध्ययन किया । डॉ. विश्वनाथ प्रसाद ने "Phonetic and Phonological Study of Bhojpuri" पर शोध कार्य किया (पी.एच.डी. थीसिस, लन्दन विश्वविद्यालय, 1950 अप्रकाशित) । डॉ. कैलाशचंद्र भाटिया का "ब्रजभाषा और खड़ीबोली का तुलनात्मक अध्ययन" सन् 1962 में प्रकाशित हुआ ।28 हरवंशलाल शर्मा ने इसकी प्रस्तावना, पृ. 1 में लिखा है - "डॉ. कैलाश भाटिया द्वारा प्रस्तुत 'ब्रज भाषा और खड़ीबोली का तुलनात्मक अध्ययन' हिन्दी भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में एक स्तुत्य तथा नवीन प्रयास है । ब्रज भाषा और खड़ी बोली का तुलनात्मक भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन इस रूप में अभी तक प्रस्तुत नहीं हुआ था ।"
डा. महावीर सरन जैन का प्रयाग विश्वविद्यालय की डी. फिल. उपाधि के लिए स्वीकृत शोधप्रबंध हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन 1967 में प्रकाशित हुआ जिसके संबंध में प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक उदयनारायण तिवारी ने ग्रंथ की भूमिका में लिखा है : " प्रस्तुत शोध प्रबंध में डा. महावीर सरन जैन ने बुलन्द शहर एवं खुर्जा तहसीलो की बोलियों का संकालिक दृष्टिकोण से भाषाशास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत किया है. डा. जैन ने यह शोध प्रबंध प्रयाग विश्वविद्यालय की डी. फिल. के लिए तैयार किया था. यह शोध प्रबंध मेरे निर्देशन में संपन्न हुआ था और मेरे अतिरिक्त इसके अन्य परीक्षक हिन्दी तथा भाषा विज्ञान के दो मूर्धन्य विद्वान डा. बाबूराम सक्सेना एवं डा. धीरेन्द्र वर्मा थे. तीनों परीक्षकों ने इस शोध प्रबंध की मुक्त कंठ से प्रशंसा की एवं 1962 में इस शोध प्रबंध पर डा. जैन को प्रयाग विश्वविद्यालय से डी. फिल. की उपाधि प्राप्त हुई. इस शोध प्रबंध की निम्नलिखित विशेषताएं हैं: 1. इसमें ब्रज भाषा एवं खडीबोली के संक्रांति क्षेत्र का भाषा सर्वेक्षण किया गया है. 2. सर्वेक्षण से उपलब्ध सामग्री का अध्ययन डा. जैन ने वर्णात्मक पद्धति से किया है. 3. यह अध्ययन एकमात्र संकालिक स्तर पर किया गया है. 4. इस शोध प्रबंध के संपन्न करने में संरचनात्मक पद्धति का भी पूर्ण सहारा लिया गया है.
मैं निसंकोच भाव से यह कह सकता हूँ कि यह हिन्दी में लिखित प्रथम शोध प्रबंध है जिसमें अधुनातन भाषाशास्त्रीय पद्धति के अनुसार सामग्री का विश्लेषण किया गया है. डा. महावीर सरन जैन ने इस शोध प्रबंध को प्रस्तुत कर जहाँ एक ओर हिन्दी भाषा के गौरव में अभिवृद्धि की है, वहाँ दूसरी ओर उन्होंने एक ऐसा सुन्दर आदर्श प्रस्तुत किया है जिसका हिन्दी की विभिन्न बोलियों के अनुसन्धित्सु ही नहीं, अपितु आर्य परिवार की अन्य भाषाओं के शोधकर्ता भी अनुगमन कर सकते हैं. यह अत्यंत आवश्यक है कि हिन्दी की अन्य बोलियों का अध्ययन भी इस आदर्श पर यथासंभव शीघ्र संपन्न किया जाए."
डॉ. ए.सी. सिन्हा की अप्रकाशित पी.एच.डी. थीसिस "Phonology and Morphology of मगही Dialect" (1966) डेक्कन कॉलेज, पुणे में उपलब्ध है । मगही पर किये गये शोध कार्य की सूची "मगही भाषा और साहित्य पर शोध कार्य" पर उपलब्ध है । Vladimir Miltner की शोध पुस्तिका "Early Hindi Morphology and Syntax, being a key to the analysis of the morphologic and syntactic structure of उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण"29 की भी एक प्रति डेक्कन कॉलेज, पुणे में उपलब्ध है ।
डा. महावीर सरन जैन को सन् 1967 में " परिनिष्ठित हिन्दी का वर्णनात्मक विश्लेषण " शीर्षक शोध प्रबंध पर जबलपुर विश्वविद्यालय की प्रथम डी. लिट. की उपाधि प्राप्त हुई जिसका प्रथम खंड सन् 1974 में " परिनिष्ठित हिन्दी का ध्वनिग्रामिक अध्ययन " शीर्षक से प्रकाशित हुआ तथा उसका दूसरा खंड सन् 1978 में " परिनिष्ठित हिन्दी का रूपग्रामिक अध्ययन " शीर्षक से प्रकाशित हुआ. शोध प्रबंध के परीक्षक डा. बाबूराम सक्सेना, डा. एस. एम. कत्रे तथा डा. उदय नारायण तिवारी थे. इस शोध प्रबंध के बारे में तीनों परीक्षकों का अभिमत था कि हिन्दी भाषा के भाषा वैज्ञानिक अध्ययन के लिए यह शोध प्रबंध प्रकाश स्तम्भ का कार्य करेगा.hindi mai bahut grammar hote hai
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