Showing posts with label अंकुर. Show all posts
Showing posts with label अंकुर. Show all posts

van mE Ek jharnA bahatA hai_वन में एक झरना बहता है

van mE Ek jharnA bahatA hai_वन में एक झरना बहता है

Poetry on Waterfall(JharnA)::झरना पर कविता


वन में एक झरना बहता है
एक नर कोकिल गाता है
वृक्षों में एक मर्मर
कोंपलों को सिहराता है,
एक अदृश्य क्रम नीचे ही नीचे
झरे पत्तों को पचाता है
अंकुर उगाता है ।

मैं सोते के साथ बहता हूँ,
पक्षी के साथ गाता हूँ,
वृक्षों के, कोंपलों के साथ थरथराता हूँ,
और उसी अदृश्य क्रम में, भीतर ही भीतर
झरे पत्तों के साथ गलता और जीर्ण होता रहता हूँ
नए प्राण पाता हूँ ।

पर सबसे अधिक मैं
वन के सन्नाटे के साथ मौन हूँ, मौन हूँ-
क्योंकि वही मुझे बतलाता है कि मैं कौन हूँ,
जोड़ता है मुझ को विराट‍ से
जो मौन, अपरिवर्त है, अपौरुषेय है
जो सब को समोता है ।

मौन का ही सूत्र
किसी अर्थ को मिटाए बिना
सारे शब्द क्रमागत
सुमिरनी में पिरोता है ।

-संग्रह: आँगन के पार द्वार / अज्ञेय