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विश्‍व पर्यावरण दिवस_1

Narendra Modi speech on World Environmental Day :: प्रधानमंत्री _ विश्‍व पर्यावरण दिवस

प्रधानमंत्री ने विश्‍व पर्यावरण दिवस पर शुभकामनाएं दीं, धरती मां को स्‍वच्‍छ और हरित बनाने के लिए लोगों की भागीदारी बढ़ाने का आह्वान किया |

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज विश्‍व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अपनी शुभकामनाएं दीं और पर्यावरण संरक्षण के संबंध में अपने विचार प्रकट करते हुए उन्‍होंने धरती को हरा भरा बनाने की जरूरत पर बल दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्‍व पर्यावरण दिवस हमें धरती मां के लिए समर्पित होने और पर्यावरण संरक्षण तथा इसे अधिक स्‍वच्‍छ और हरित बनाने की हमारी जिम्‍मेदारी की याद दिलाता है। पर्यावरण के साथ पूरी तरह साहचर्य में जीवन को प्रोत्‍साहित करने वाली हमारी संस्‍कृति का स्‍वागत करते हुए श्री मोदी ने कहा कि हमें इस तरह की संस्‍कृति का हिस्‍सा बनने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ है। उन्‍होंने हर व्‍यक्ति से एक ट्रस्‍टी के रूप में कार्य करने का आह्वान किया, जिससे हम न सिर्फ मौजूदा विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर सकेंगे बल्कि आगामी पीढि़यों के लिए खुशहाली सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर सकेंगे।

प्रधानमंत्री ने स्‍वच्‍छ और हरित धरती के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ लोगों की भागीदारी की जरूरत पर भी बल दिया। उन्‍होंने लोगों से यह सुनिश्चित करने की अपील भी की कि दैनिक जीवन में उनका प्रत्‍येक कदम प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर केंद्रित होना चाहिए।

Martin Luther King Jr_मार्टिन लूथर किंग

Martin Luther King Jr_मार्टिन लूथर किंग

शांति के पथ पर समर्पित महान व्यक्ति



डॉ॰ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऐक्टिविस्ट) एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे। उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है। उनका जन्म सन्‌ 1929 में अट्लांटा, अमेरिका में हुआ था। डॉ॰ किंग ने संयुक्त राज्य अमेरिका में नीग्रो समुदाय के प्रति होने वाले भेदभाव के विरुद्ध सफल अहिंसात्मक आंदोलन का संचालन किया। सन्‌ 1955 का वर्ष उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था। इसी वर्ष कोरेटा से उनका विवाह हुआ, उनको अमेरिका के दक्षिणी प्रांत अल्बामा के मांटगोमरी शहर में डेक्सटर एवेन्यू बॅपटिस्ट चर्च में प्रवचन देने बुलाया गया और इसी वर्ष मॉटगोमरी की सार्वजनिक बसों में काले-गोरे के भेद के विरुद्ध एक महिला श्रीमती रोज पार्क्स ने गिरफ्तारी दी। इसके बाद ही डॉ॰ किंग ने प्रसिद्ध बस आंदोलन चलाया।

पूरे 381 दिनों तक चले इस सत्याग्रही आंदोलन के बाद अमेरिकी बसों में काले-गोरे यात्रियों के लिए अलग-अलग सीटें रखने का प्रावधान खत्म कर दिया गया। बाद में उन्होंने धार्मिक नेताओं की मदद से समान नागरिक कानून आंदोलन अमेरिका के उत्तरी भाग में भी फैलाया। उन्हें सन्‌ 64 में विश्व शांति के लिए सबसे कम् उम्र मे नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधियां दीं। धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं ने उन्हें मेडल प्रदान किए। 'टाइम' पत्रिका ने उन्हें 1963 का 'मैन ऑफ द इयर' चुना। वे गांधीजी के अहिंसक आंदोलन से बेहद प्रभावित थे। गांधीजी के आदर्शों पर चलकर ही डॉ॰ किंग ने अमेरिका में इतना सफल आंदोलन चलाया, जिसे अधिकांश गोरों का भी समर्थन मिला।

सन्‌ 1959 में उन्होंने भारत की यात्रा की। डॉ॰ किंग ने अखबारों में कई आलेख लिखे। 'स्ट्राइड टुवर्ड फ्रीडम (Stride Toward Freedom: The Montgomery Story)' (1958) तथा 'व्हाय वी कैन नॉट वेट (Why We Can't Wait)' (1964) उनकी लिखी दो पुस्तकें हैं। सन्‌ 1957 में उन्होंने साउथ क्रिश्चियन लीडरशिप कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। डॉ॰ किंग की प्रिय उक्ति थी- 'हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे।' 4 अप्रैल 1968 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।