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hiranI jharnA - हिरनी झरना

hiranI jharnA - हिरनी झरना

Poetry on jharnA :: झरना पर कविता



तमाम शोरगुल से भरे माहौल में
स्मृतियो की ऊँची पहाड़ी पर टिका
अक्सर वक्त-बेवक्त झरने लगता है
मन के भीतर का झरना
कई-कई जंगलों के बेतरतीब से पेड़ो मुलाक़ात करते
टेबो-घाटी के कई-कई खूबसूरत मोड़ों के सूनेपन
से गुज़रते निहारते उन्हें
आती है दूर से पुकारती हिरनी झरने की आवाज़
अपने करीब और करीब बुलाती हुई
आदिवासी नृत्य के मोहक घेरे में फँसे मन में पसरता
उनके गीतों से टपकता आदिम उल्लास
मुंडारी के बोल न जानने के बावजूद

और तेज होने लगी थी पानी के गिरने की आवाज़
एक ज़ादू के देश में पहुँच गए थे हम
गँवाकर बीते समय की सारी याददाश्त
ऊपर समझदार लड़की की तरह सलीके से
बही जा रही थी पहाड़ी पथ्थरों पर हिरनी नदी

दिखी औचक बदलती हुई पाला
उछल कर कूद पड़ी नीचे की ओर
दौड़ा बचाने को पीछे से आता पानी का रेला
पर वह भागी जाती थी कुलाँचे भरती हिरनी की तरह
सारे अवरोधों को रौंदती-कुचलती

कितना मादक और कितना सुरीला पथ्थरों पर
पानी का संगीत
क़ुदरत ने कैसे किया होगा इस इंद्रजाल का अविष्कार

- संग्रह: सीढ़ियों का दुख / रश्मि रेखा

Beauty of Nature - प्राकृतिक सौंदर्य

Beauty of Nature Poetry - प्राकृतिक सौंदर्य कविता











नावें और जहाज नदी नद
     सागर-तल पर तरते हैं।
पर नभ पर इनसे भी सुंदर
     जलधर-निकर विचरते हैं॥
इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा
     वृक्षों के शिखरों पर है।
जो धरती से नभ तक रचता
     अद्भुत मार्ग मनोहर है॥
मनमाने निर्मित नदियों के
    पुल से वह अति सुंदर है।
निज कृति का अभिमान व्यर्थ ही
    करता अविवेकी नर है।


 ~ रामनरेश त्रिपाठी (मानसी )

Nature's beauty _ प्रकृति की सुन्दरता

Nature's beauty _ प्रकृति की सुन्दरता









प्रकृति की सुन्दरता देखो
बिखरी चारों ओर है
कहीं पर पीपल कहीं अशोक
कहीं पर बरगद घोर है

लाल गुलाब से सुर्ख है
देखो धरती के दोनों गाल
लिली मोगरा और चमेली
मचा रहे है धमाल

देखो हिम से भरा हिमालय
नंदा की ऊँची पर्वत चोटी
कल कल करती बहती देखो
गंगा यमुना की निर्मल सोती

प्रकृति ने हम सबको दिया
जीवन का अनुपम संदेश
आओ मिटाए मन की दूरी
दूर हटाये कष्ट कलेश !


~ रवि प्रकाश केशरी