Showing posts with label moon. Show all posts
Showing posts with label moon. Show all posts

pratyAshA jharnA_प्रत्याशा झरना

pratyAshA jharnA_प्रत्याशा झरना

Poetry on jharnA :: झरना पर कविता

मन्द पवन बह रहा अँधेरी रात हैं।
आज अकेले निर्जन गृह में क्लान्त हो-
स्थित हूँ, प्रत्याशा में मैं तो प्राणहीन।
शिथिल विपंची मिली विरह संगीत से
बजने लगी उदास पहाड़ी रागिनी।
कहते हो-\"उत्कंठा तेरी कपट हैं।\"
नहीं नहीं उस धुँधले तारे को अभी-
आधी खुली हुई खिड़की की राह से
जीवन-धन! मैं देख रहा हूँ सत्य ही ।
दिखलाई पड़ता हैं जो तम-व्योम में,
हिचको मत निस्संग न देख मुझे अभी।
तुमको आते देख, स्वयं हट जायेगे-
वे सब, आओ, मत-संकोच करो यहाँ।
सुलभ हमारा मिलना हैं-कारण यही-
ध्यान हमारा नहीं तुम्हें जो हो रहा।
क्योंकि तुम्हारे हम तो करतलगत रहे
हाँ, हाँ, औरों की भी हो सम्वर्धना।
किन्तु न मेरी करो परीक्षा, प्राणधन!
होड़ लगाओ नहीं, न दो उत्तेजना।
चलने दो मयलानिल की शुचि चाल से।
हृदय हमारा नही हिलाने योग्य हैं।
चन्द्र-किरण-हिम-बिन्दु-मधुर-मकरन्द से
बनी सुधा, रख दी हैं हीरक-पात्र में।
मत छलकाओ इसे, प्रेम परिपूर्ण हैं ।

- जयशंकर प्रसाद

chandr (Moon) _ चन्द्र

chandr (Moon) poetry _ चन्द्र (चाँद) कविता








ये सर्व वीदित है चन्द्र
किस प्रकार लील लिया है
तुम्हारी अपरिमित आभा ने
भूतल के अंधकार को
क्यूँ प्रतीक्षारत हो
रात्रि के यायावर के प्रतिपुष्टि की
वो उनका सत्य है
यामिनी का आत्मसमर्पण
करता है तुम्हारे विजय की घोषणा
पाषाण-पथिक की ज्योत्सना अमर रहे
युगों से इंगित कर रही है
इला की सुकुमार सुलोचना
नही अधिकार चंद्रकिरण को
करे शशांक की आलोचना



~ सुलोचना वर्मा

prakriti_प्रकृति

prakriti - प्रकृति

Poetry on Nature ::प्रकृति पर कविता



प्रकृति
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज
नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान
हाँ, यही तो हैं,……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार II


~ डी. के. निवतियाँ