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rAshtrIya nadI_राष्‍ट्रीय नदी

rAshtrIya nadI_राष्‍ट्रीय नदी

National Symbols of India :: भारत के राष्ट्रीय चिन्ह



1) गंगा भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण और राष्‍ट्रीय नदी है।
2) यह हिमालय के गंगोत्री ग्‍लेशियर में भागीरथि नदी के नाम से बर्फ के पहाड़ों के बीच जन्‍म लेती है।
3) यह भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2,510 किमी की दूरी तय करती है।
4) यह उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ीके सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है |
5) गंगा नदी को उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड भी कहा गया है।
6) गंगा नदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके अंग्रेज़ीकृत नाम ‘द गैंगीज़ (The Ganges)’ से ही जाना जाता है।
7) गंगा सहस्राब्दियों से हिन्दुओं की पवित्र तथा पूजनीय नदी रही है।
8) इसकी जलधारा में स्नान से पापमुक्ति और जलपान से शुद्धि होती है।
9) इसकी पाँच आरम्भिक धाराओं भागीरथी, अलकनन्दा, मंदाकिनी, धौलीगंगा तथा पिंडर का उद्गम उत्तरांचल राज्य में होता है।
10) गंगा में उत्तर की ओर से यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं |
11) दक्षिण के पठार से चंबल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि नदियाँ आकर मिलती हैं |
12) ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं अनेक पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है।
13) संस्कृत कवि जगन्नाथ राय ने गंगा की स्तुति में 'श्रीगंगालहरी' नामक काव्य की रचना की है।

O sAgar _ ओ सागर

O sAgar! mai tumsE _ ओ सागर ! मैं तुमसे

Poetry on Ocean (sAgar)::सागर पर कविता










नदियां,
बहकर आती नदियां,
हेल मेलती, खेल खेलती
नदियां।
सागर,
उनसे बना है सागर ।
विस्तीर्ण, प्रगाढ़, नीला
लहरीला सागर।
सुनो सागर !
ओ सागर !
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।
आओ,
सहज ही लिपट जाओ मुझसे
अपने नेह के भुजबल में
आलिंगनबद्ध कर लो।
श्यामल सागर !
मोती ओर मूंगे के कानों वाले
ओ सागर,
मछली की तड़प लेकर आया हूँ
लौटा न देना।
सागर,
खामोश सागर !
उदास सागर !
नदियां,
बोलती हैं नदियां,
कहाँ है सागर ?
कौन कहे,
कहाँ है सागर !

- माया मृग
संग्रह: ...कि जीवन ठहर न जाए /

sAgar dAdA_सागर दादा

sAgar dAdA_सागर दादा

Poetry on Ocean (sAgar)::सागर पर कविता














सागर दादा, सागर दादा,
नदियों झीलों के परदादा।
तुम नदियों को पास बुलाते,
ले गोदी में उन्हें खिलाते।
झीलों पर भी स्नेह तुम्हारा,
हर तालाब तुम्हें है प्यारा।

मेघ तुम्हारे नौकर-चाकर,
वे पानी दे जाते लाकर।
साँस भरी तो ज्वार उठाया,
साँस निकाली भाटा आया।
तुम सबसे हिल-मिल बसते हो,
लहरों में खिल-खिल हँसते हो!

-रामावतार चेतन

AyI barkhA rAnI_आई बरखा रानी

AyI barkhA rAnI_आई बरखा रानी

Poetry on Rain :: बारिश पर कविता



धूप कहीं भागी पिछवाड़े 
छम से आया पानी।
बूंदों के सिक्के उछालती
आई बरखा रानी॥
हवा चली पुरवाई, नभ में
छाई श्याम बदरिया।
बादल लगे गरजने गड़-गड़
चमक रही बिजुरिया॥
झूम-झूम के अाँगन अपनी
भीग नहाती नानी।
खेत भरे भर आई नदिया
भरती ताल-तलैया।
आम नीम महुआ हरियाए
हरियाई है बगिया॥
मौसम आया रिमझिम वाला
लहरे चूनर पानी।
मोर नाचने लगे कुहुक के 
गाती है कोयलिया।
कछुए, बगुले, मेंढक खुश हैं
खुश हैं सोन-मछरिया॥
दोनों हाथ लुटाते दौलत 
बादल भैया दानी।

- शोभा शर्मा

jhUmkar jab barsAt_झूमकर जब बरसात

jhUmkar jab barsAt_झूमकर जब बरसात

Poetry on Rain :: बरसात पर कविता












मोर की तरह नाच उठे पेड़ों के पत्ते,
झूमकर जब बरसात हुई।
कई महीनों से जमी धूल और गंदगी,
इसके साथ बही।

चमक उठी हर ऊंची इमारत,
महक उठी हर पेड़ की डाली।
नदियों ने करवट ली और,
समंदर में लहर बन गई।

और इस बार फिर बरसात,
दुखी होकर अपने घर चली गई।
बोली धो ना सकी मैं वो मैला दिल,
जो खून की नदियां बहाता है।
चमका न सकी मैं उस मन को,
जो हर तरफ गंदगी फैलाता है।

रूठी है अब भी धरती मुझसे,
और कहती यही हर बार है।
बहुत है बोझ और गंदगी मुझ पर,
क्यों ना बहा ले गई तुम।

सोचा अबकी बरस जो आऊंगी,
तो इतना बरस जाऊंगी।
हर अच्‍छा और हर बुरा,
साथ में अपने ले जाऊंगी।
लूंगी वो विकराल रूप की,
प्रलय मैं बन जाऊंगी।

बरसूंगी एक बार इस तरह कि,
सुख-दुख सब ले जाऊंगी।
तेरे दिल का बोझ धरती,
एक दिन मैं कम कर जाऊंगी।

सुन ले हर मैले दिल वाले,
खून की नदियां बहाने वाले।
जब मैं अपना रूप दिखाऊंगी,
तुम सबको अपने संग ले जाऊंगी।

ना कोई हथियार होगा,
ना कोई विस्फोट होगा।
ना ही मैं रुकूंगी,
ना कोई मुझे रोकने वाला होगा।

- जया ठोमरे 'कुमावत'

AvO pyArE bAdal_आओ प्यारे बादलजी

AvO pyArE bAdal_आओ प्यारे बादलजी

Poetry on Rain ::बारिश पर कविता
















ताल-तलैया भरो लबालब
कुएं-बावड़ी भरो डबाडब
उछले नदी छलाछलजी
आओ प्यारे बादलजी

गर्जन-तर्जन करो ढमाढम
बिजली नर्तन करो चमाचम
धरा बजाए मादलजी
आओ प्यारे बादलजी

खेतों में फसलें मुस्काएं
ठंडी हवा झूम लहराएं
जैसे मां का आंचलजी
आओ प्यारे बादलजी

टर्र-टर्र मेंढक बोले
पीहू-पपीहा रस घोले
मोर हुआ है पागलजी
आओ प्यारे बादलजी

जल अमोल है हम समझें
इसे सहेजना हम समझें
घन बरसे हैं श्यामलजी
आओ प्यारे बादलजी

बूंदें बरसें सुधा समान
सप्त स्वरों की गूंजे तान
मिश्री घोले कोयलजी
आओ प्यारे बादलजी।

- डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'|

prakriti_प्रकृति

prakriti - प्रकृति

Poetry on Nature ::प्रकृति पर कविता



प्रकृति
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज
नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान
हाँ, यही तो हैं,……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार II


~ डी. के. निवतियाँ