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pahalI bAr dEkhA_पहली बार देखा झरना

pahalI bAr dEkhA_पहली बार देखा झरना

Poetry on jharnA :: झरना पर कविता















पहली ही पहली बार हमने-तुमने देखा झरना
देखा कैसे जल उठता है गिरता है पत्थर पर
कैसे धान के लावों जैसा फूट-फूटकर झर पड़ता चट्टानों पर

कितना ठंडा घना था कितना जल वह
अभी-अभी धरती की नाभि खोल जो बाहर आया
कौन जानता कितनी सदियों वह पृथ्वी की नस-नाड़ी में घूमा
जीवन के आरम्भ से लेकर आज अभी तक
धरती को जो रहा भिंगोए
वही पुराना जल यह अपना

पहली ही पहली बार हमने-तुमने देखा झरना--
झरते जल को देख हिला
अपने भीतर का भी
जल ।

संग्रह: अपनी केवल धार / अरुण कमल

aur ek jharnA_और एक झरना

aur ek jharnA_और एक झरना

Poetry on jharnA :: झरना पर कविता
















और एक झरना बहुत शफ़्फ़ाक था,
बर्फ़ के मानिन्द पानी साफ़ था,-
आरम्भ कहाँ है कैसे था वह मालूम नहीं हो:
पर उस की बहार,
हीरे की हो धारा,
मोती का हो गर खेत,
कुन्दन की हो वर्षा,
और विद्युत की छटा तिर्छी पड़े उन पै गर आकर,
तो भी वह विचित्र चित्र सा माकूल न हो।

- बाबू महेश नारायण

AyI barkhA rAnI_आई बरखा रानी

AyI barkhA rAnI_आई बरखा रानी

Poetry on Rain :: बारिश पर कविता



धूप कहीं भागी पिछवाड़े 
छम से आया पानी।
बूंदों के सिक्के उछालती
आई बरखा रानी॥
हवा चली पुरवाई, नभ में
छाई श्याम बदरिया।
बादल लगे गरजने गड़-गड़
चमक रही बिजुरिया॥
झूम-झूम के अाँगन अपनी
भीग नहाती नानी।
खेत भरे भर आई नदिया
भरती ताल-तलैया।
आम नीम महुआ हरियाए
हरियाई है बगिया॥
मौसम आया रिमझिम वाला
लहरे चूनर पानी।
मोर नाचने लगे कुहुक के 
गाती है कोयलिया।
कछुए, बगुले, मेंढक खुश हैं
खुश हैं सोन-मछरिया॥
दोनों हाथ लुटाते दौलत 
बादल भैया दानी।

- शोभा शर्मा

pAnI lEkar bAdal_पानी लेकर बादल

pAnI lEkar bAdal_पानी लेकर बादल

Poetry on bAdal ::बादल पर कविता











पानी लेकर बादल आए,
आसमान पर जमकर छाए।

रिमझिम-रिमझिम बरसेंगे,
गढ़-गढ़कर बादल गाए।

पेड़, पौधे, वृक्ष जहां मिलेंगे
वहां बरसे, बादल इतराए।

मन मयूर सबका नाचे
बादल भी नाचे, शरमाए।

जल ही तो जीवन है
जीवन अपना खूब लुटाए।

- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

badE jOr kE bAdal_बड़े जोर के बादल

badE jOr kE bAdal_बड़े जोर के बादल

Poetry on Rain ::बारिश पर कविता















बड़े जोर के बादल आए
बड़े जोर का पानी॥

अभी खिली थी धूप सुनहरी
चलती थी पुरवैया।
नीलम गाती गीत बाजती
ननमुन की पायलिया॥
बीन रही थी गेहूं आंगन
बैठी बूढ़ी नानी।

टप-टप टप-टप गिरी टपाटप
मोटी-मोटी बूंदें।
लगता जैसे टीन छतों पर
हिरणें आकर कूदे॥
दादी-अम्मा की डूबी है
बाहर रखी मथानी।
छप्पर-छान टपकते बहते
छत वाले परनाले।
गिरती हैं कच्ची दीवारें
हैं प्राणों के लाले॥

कैसे घर ये बने दुबारा
जेब न कौड़ी कानी।

-शोभा शर्मा