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sAgar dAdA_सागर दादा

sAgar dAdA_सागर दादा

Poetry on Ocean (sAgar)::सागर पर कविता














सागर दादा, सागर दादा,
नदियों झीलों के परदादा।
तुम नदियों को पास बुलाते,
ले गोदी में उन्हें खिलाते।
झीलों पर भी स्नेह तुम्हारा,
हर तालाब तुम्हें है प्यारा।

मेघ तुम्हारे नौकर-चाकर,
वे पानी दे जाते लाकर।
साँस भरी तो ज्वार उठाया,
साँस निकाली भाटा आया।
तुम सबसे हिल-मिल बसते हो,
लहरों में खिल-खिल हँसते हो!

-रामावतार चेतन

patjhar kA jharna dekhO tum_पतझर का झरना देखो तुम

patjhar kA jharna dekhO tum_पतझर का झरना देखो तुम

Poetry on Stream(jharna)::झरना पर कविता


मधु-मादक रंगों ने बरबस,
इस तन का श्रृंगार किया है !
रंग उसी के हिस्से आया,
जिसने मन से प्यार किया है !

वासंती उल्लास को केवल,
फागुन का अनुराग न समझो !
ढोलक की हर थाप को केवल,
मधुऋतु की पदचाप न समझो !!
भीतर से जो खुला उसी ने,
जीवन का मनुहार किया है !
रंग उसी के हिस्से...

पतझर में देखो झरना तुम,
फिर वसंत का आना देखो !
पीड़ा में जीवन की क्रीड़ा,
आँसू में मुस्काना देखो !!
सुख-दुख में यदि भेद नहीं है,
समझो जीवन पूर्ण जिया है !
रंग उसी के हिस्से...

- चंद्र कुमार जैन

yah jIvan kyA hai_यह जीवन क्या है

yah jIvan kyA hai_यह जीवन क्या है

Poetry on Stream :: झरना पर कविता

जीवन का झरना / आरसी प्रसाद सिंह



यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।

कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे?
किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे?

निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है!
धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।

बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता,
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।

लहरें उठती हैं, गिरती हैं; नाविक तट पर पछताता है।
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है।

निर्झर कहता है, बढ़े चलो! देखो मत पीछे मुड़ कर!
यौवन कहता है, बढ़े चलो! सोचो मत होगा क्या चल कर?

चलना है, केवल चलना है ! जीवन चलता ही रहता है !
रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है !

madhur hai strOt_मधुर हैं स्रोत

madhur hai strOt_मधुर हैं स्रोत

Poetry on Stream :: झरना पर कविता

Jharna (poetry)Jaya shankar Prasad :: झरना (कविता) / जयशंकर प्रसाद



मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी 
न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी 
मनोहर झरना। 

कठिन गिरि कहाँ विदारित करना 
बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी 
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी 

कल्पनातीत काल की घटना 
हृदय को लगी अचानक रटना 
देखकर झरना। 

प्रथम वर्षा, से इसका भरना 
स्मरण हो रहा शैल का कटना 
कल्पनातीत काल की घटना 

कर गई प्लावित तन मन सारा 
एक दिन तब अपांग की धारा 
हृदय से झरना- 

बह चला, जैसे दृगजल ढरना। 
प्रणय वन्या ने किया पसारा 
कर गई प्लावित तन मन सारा 

प्रेम की पवित्र परछाई में 
लालसा हरित विटप झाँई में 
बह चला झरना। 

तापमय जीवन शीतल करना 
सत्य यह तेरी सुघराई में 
प्रेम की पवित्र परछाई में॥

prakriti_प्रकृति

prakriti - प्रकृति

Poetry on Nature ::प्रकृति पर कविता



प्रकृति
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज
नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान
हाँ, यही तो हैं,……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार II


~ डी. के. निवतियाँ