Comparative Grammar - तुलनात्मक व्याकरण
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से एक ही परिवार की भारतीय भाषाओं के तुलनात्मक व्याकरण का युग शुरू हुआ जब राबर्ट काल्डवेल (1814-1891) की स्मारकीय कृति (Monumental work) ‘Comparative Grammar of the Dravidian Languages' (द्रविड भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण) सन् 1856 में प्रकाशित हुई । इंग्लैंड निवासी जॉन बीम्स 1857 में इंडियन सिविल सर्विस में आये । भाषाओं के अध्ययन में ये बचपन से ही रुचि लेते थे । काल्डवेल की कृति देखकर इन्हें भारतीय आर्य भाषाओं पर वैसा ही काम करने की प्रेरणा मिली और लगभग 14 वर्षों तक इस विषय पर कार्य करते हुए उन्होंने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ "A Comparative Grammar of the Modern Aryan Languages of India" तीन भागों में (प्रथम भाग-1872 में, द्वितीय भाग-1878 तथा तृतीय भाग 1879 में) प्रकाशित किया । भारतीय आर्य भाषाओं के तुलनात्मक विकास पर यह पहला कार्य है । इस विषय पर अभी तक कोई दूसरा कार्य नहीं हुआ है ।26 एक हजार से अधिक पृष्ठों के इस विस्तृत ग्रंथ के प्रारंभ में भारतीय आर्य भाषाओं के उद्भव और विकास पर 121 पृष्ठों की एक लम्बी-सी भूमिका है तथा आगे हिन्दी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, उड़िया तथा बंगला की ध्वनियों तथा उनके संज्ञा, सर्वनाम, संख्यावाचक विशेषण तथा क्रियारूपों का संस्कृत से तुलनात्मक विकास दिखलाया गया है । मुंशीराम मनोहर लाल, दिल्ली ने इसका पुनर्मुद्रण किया है ।
सैमुएल केलॉग (1839-1899) कृत "A Grammar of the Hindi Language" का उल्लेख पहले किया जा चुका है । हिन्दी का यह प्रथम सुव्यवस्थित तथा विस्तृत व्याकरण है तथा आज भी कई दृष्टियों से सर्वोत्तम है ।27 इनमें हिन्दी के तत्कालीन परिनिष्ठित रूपों के साथ-साथ मारवाड़ी, मेवाड़ी, मेरवाड़ी, जयपुरी, हाड़ात, कुमाऊँनी, गढ़वाली, नेपाली, कन्नौजी, बैसवाड़ी, भोजपुरी, मगही और मैथिली आदि में भी रूप यथास्थान दिये गये हैं । वाक्य-रचना के विस्तृत प्रायोगिक नियमों के अतिरिक्त रूपों की व्युत्पत्ति तथा उनका विकास भी दिया गया है।
आगरा में एक जर्मन पादरी के घर जन्मे जर्मन विद्वान् रुडोल्फ हार्नले (1841-1918) का प्रसिद्ध ग्रंथ "A Comparative Grammar of the Gaudian Languages" कलकत्ते से सन् 1880 में प्रकाशित हुआ । इसमें भोजपुरी का विस्तृत व्याकरण देने के साथ-साथ आधुनिक आर्यभाषाओं की काफी तुलनात्मक सामग्री दी गयी है । इसमें हिन्दी क्रिया रूपों में लिंग-परिवर्तन के नियम, विभिन्न रूपों का विकास, भाषायी मानचित्र तथा लिपियों में विकास का चित्र आदि भी हैं । एशियन एजुकेशनल सर्विसेज, दिल्ली ने इसका पुनर्मुद्रण सन् 1991 में किया है ।