Hindi Grammar during 20th Century -
बीसवीं शताब्दी के हिन्दी व्याकरण
सन् 1920 में पं. कामता प्रसाद गुरु द्वारा लिखित प्रथम बार एक प्रामाणिक एवं आदर्श "हिन्दी व्याकरण" नागरी प्रचारणी सभा, काशी ने प्रकाशित किया । इसका षष्ठ पुनर्मुद्रण सन् 1960 में हुआ । सन् 2001 में इसका 22वाँ संस्करण प्रकाशित हुआ । इस व्याकरण के लेखक ने अपनी भूमिका में लिखा है - "हिन्दी व्याकरण की छोटी-मोटी कई पुस्तकें उपलब्ध होते हुए भी हिन्दी में, इस समय अपने विषय और ढंग की यही एक व्यापक और (संभवतः) मौलिक पुस्तक है । इस व्याकरण में अन्यान्य विशेषताओं के साथ-साथ एक बड़ी विशेषता यह भी है कि नियमों के स्पष्टीकरण के लिए इसमें जो उदाहरण दिये गये हैं वे अधिकतर हिन्दी के भिन्न-भिन्न कालों के प्रतिष्ठित एवं प्रामाणिक लेखकों के ग्रंथों से लिये गये हैं । इस विशेषता के कारण पुस्तक में यथासंभव, अंध-परंपरा अथवा कृत्रिमता का दोष नहीं आने पाया है ।"21 इस व्याकरण में छन्द, अलंकार, कहावतों और मुहावरों को स्थान नहीं दिया गया है । लेखक का कहना है कि यद्यपि ये सब विषय भाषा ज्ञान की पूर्णता के लिए आवश्यक हैं, तो भी ये सब अपने-आपमें स्वतंत्र विषय हैं और व्याकरण से इनका कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है । किसी भी भाषा का "सर्वांगपूर्ण" व्याकरण वही है, जिससे उस भाषा में शिष्ट रूपों और प्रयोगों का पूर्ण विवेचन किया जाय और उनमें यथासंभव स्थिरता लायी जाय ।22 पं. कामता प्रसाद गुरु ने यह व्याकरण, अधिकांश में, अंग्रेजी व्याकरण के ढंग पर लिखा है । इस प्रणाली के अनुसरण का कारण बताते हुए वे लिखते हैं - "इस प्रणाली के अनुसरण का मुख्य कारण यह है कि इसमें स्पष्टता और सरलता विशेष रूप से पायी जाती है और सूत्र तथा भाष्य दोनों ऐसे मिले रहते हैं कि एक ही लेखक पूरा व्याकरण विशद् रूप से लिख सकता है । हिन्दी भाषा के लिए वह दिन सचमुच बड़े गौरव का होगा जब इसका व्याकरण 'अष्टाध्यायी' और 'महाभाष्य' के मिश्रित रूप में लिखा जायेगा, पर वह दिन अभी बहुत दूर दिखायी देता है ।"
हिन्दी के राष्ट्रभाषा हो जाने पर विद्वानों का ध्यान इसके स्वतंत्र अस्तित्व की खोज पर जाने लगा । पं. किशोरीदास वाजपेयी ने "राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण" (1949) लिखकर हिन्दी व्याकरण की स्वतंत्र सत्ता पर अपने महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये हैं । उनके शब्दों में - "कोई व्याकरण अंग्रेजी के आधार पर लिखा गया है और कोई संस्कृत के आधार पर । हिन्दी के आधार पर हिन्दी का व्याकरण बना ही नहीं । तब तो उलझन होगी ही ।"24 उनका "हिन्दी शब्दानुशासन" (1957) एक महत्त्वपूर्ण व्याकरण ग्रंथ है । इसका पंचम संस्करण संवत् 2055 वि. (सन् 1998 ई.) में प्रकाशित हुआ ।
डॉ. वासुदेवनन्दन प्रसाद लिखित "आधुनिक हिन्दी व्याकरण और रचना" सन् 1959 में पटना से प्रकाशित हुआ, जिसका तेरहवाँ संस्करण 1977 में निकला । डॉ. प्रभाकर माचवे की इस व्याकरण ग्रंथ पर प्रतिक्रिया इस प्रकार है - "हिन्दी में व्याकरण ग्रंथ, जो स्टैण्डर्ड माने जायें, बहुत थोड़े हैं । उन पुस्तकों में डॉ. प्रसाद की रचना मैं सभी दृष्टियों से सर्वांगपूर्ण समझता हूँ । स्व. रामचन्द्र वर्मा, स्व. कामता प्रसाद गुरु और आचार्य किशोरी दास वाजपेयी के बाद डॉ. प्रसाद का कार्य अत्यन्त मूल्यवान् और उपयोगी हुआ है ।"25 इस व्याकरण का 23वाँ संस्करण 1993 में निकला, जिसका द्वितीय पुनःमुद्रण सन् 2001 में हुआ ।
विदेशी वैयाकरणों के द्वारा लिखित हिन्दी व्याकरणों में डॉ. ज़ालमन दीमशित्स का रूसी भाषा में लिखा "Грамматика Языка хинди" (हिन्दी भाषा का व्याकरण) मेरे मत में सर्वश्रेष्ठ है । इसका द्वितीय संस्करण (दो खण्डों में - 373 + 300 पृष्ठ) मास्को से सन् 1986 ई. में प्रकाशित हुआ । इसके प्रथम संस्करण का हिन्दी अनुवाद “हिन्दी व्याकरण” रादुगा प्रकाशन, मास्को से सन् 1983 ई. में प्रकाशित हुआ । इसकी विस्तृत चर्चा अथवा समीक्षा किसी अन्य लेख में की जाएगी ।