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10ClassHindi

AP _ 10 Class Hindi (SL) :

Project Work in 1. barasatE bAdal ( बरसते बदल  ) :

Poetry on Nature ::प्रकृति पर कविता :

Poetry on Moon _ चन्द्र (चाँद) कविता

Poetry on Rain ::बरसा‍त पर कविता




9) पहली बार देखा झरना

Poetry on Ocean (sAgar)::सागर पर कविता






Poetry on bAdal ::बादल पर कविता

1) पानी लेकर बादल

Project Work in 2. EidgAh ( ईदगाह  ) :

वरिष्ठ नागरिकों ( बड़े बुजुर्ग ) के प्रति आदर सम्मान _कहानी

1) राम को वनवास

2) बूढ़ा पिता

3) मजाक या मदद

Project Work in 3. ham bhAratvAsI ( हम भारतवासी ) :

शांति के पथ पर समर्पित महान व्यक्ति :

Martin Luther King Jr_मार्टिन लूथर किंग

Laxminarayan Ramdas _ लक्ष्मीनारायण रामदास

Arputham Joaquin _ अर्पुथम जौकिन

Chandi Prasad Bhatt _ चंडीप्रसाद भट्ट

Project Work in 4.kaN kaN kA adhikArI ( कण-कण का अधिकारी )

vishwa shram diwas _ विश्व श्रम दिवस

Project Work in 7.bhakti pad (भक्ति पद )


AP _ 10 Class Hindi (FL) :

Project Work in Lesson 1. sundar bhArat (सुन्दर भारत )

बड़ों के प्रति आदर सम्मान संबंधी कहानी

बड़ों के प्रति आदर सम्मान संबंधी कहानी



रामायण के अनुसार राजा दशरथ की रानी कैकयी ने अपनी दासी मंथरा के बहकावे में आकर राजा से दो वरदान मांगे। पहला भरत को राज्य और दूसरा राम को वनवास। न चाहते हुए भी दशरथ ने राम को वनवास भेज दिया। राम के साथ सीता व लक्ष्मण भी वन में चले गए। राम को वनवास जाता देख अयोध्यावासी उनके पीछे-पीछे तमसा नदी तक आ गए। यहां श्रीराम ने विश्राम किया और रात में जब अयोध्यावासी सो रहे थे, वहां से चले गए। निषादराज गुह ने श्रीराम, सीता व लक्ष्मण को गंगा पार पहुंचाया।
श्रीराम, सीता व लक्ष्मण जिस भी गांव या नगर से निकलते, वहां के लोग उनकी एक झलक पाने के लिए लालायित हो जाते थे और उनका खूब आदर-सत्कार करते। चलते समय सीता इस बात का ध्यान रखती कि गलती से भी श्रीराम के पदचिह्नों पर उनका पैर न रखा जाए। इसलिए वे श्रीराम के दोनों पदचिह्नों के बीच में चलती थीं। लक्ष्मण भी यह देखते हुए चलते कि श्रीराम व सीता दोनों ही के पैरों के निशान पर उनका पैर न पड़े। श्रीराम, सीता व लक्ष्मण जिस भी गांव या नगर से गुजरते, वहां के वासी भक्तिभाव से उनका पूजन करते।
प्रभु पद रेख बीच बिच सीता। धरति चरन मग चलति सभीता।।
सीय राम पद अंक बराएं। लखन चलहिं मगु दाहिने लाएं।।

अर्थात- श्रीराम के चरण चिह्नों के बीच-बीच में पैर रखती हुई सीताजी मार्ग में चल रही हैं और लक्ष्मण सीता व श्रीराम दोनों के चरण चिह्नों को बचाते हुए (मर्यादा की रक्षा के लिए) उन्हें दाहिनेे रखकर रास्ता चल रहे हैं।

यात्रा करते हुए श्रीराम ऋषि वाल्मीकि के आश्रम आ गए। ऋषि ने श्रीराम का सम्मान किया और आशीर्वाद भी दिया। श्रीराम के पूछने पर वाल्मीकि ने उन्हें चित्रकूट पर्वत पर निवास करने की सलाह दी। मुनि के कहने पर श्रीराम ने चित्रकूट में अपनी कुटिया बनाई और सुखपूर्वक रहने लगे।
सीख: 1. पारिवारिक जीवन में मर्यादा का होना बहुत आवश्यक है।
2.छोटे जब बड़ों का आदर करते हैं तभी परिवार आदर्श बन पाता है।

lahar sAgar kA _ लहर सागर का

lahar sAgar kA - लहर सागर का नहीं श्रृंगार

Poetry on Ocean (sAgar)::सागर पर कविता











लहर सागर का नहीं श्रृंगार,
उसकी विकलता है;
अनिल अम्बर का नहीं, खिलवार
उसकी विकलता है;
विविध रूपों में हुआ साकार,
रंगो में सुरंजित,
मृत्तिका का यह नहीं संसार,
उसकी विकलता है।

गन्ध कलिका का नहीं उद्गार,
उसकी विकलता है;
फूल मधुवन का नहीं गलहार,
उसकी विकलता है;
कोकिला का कौन-सा व्यवहार,
ऋतुपति को न भाया?
कूक कोयल की नहीं मनुहार,
उसकी विकलता है।

गान गायक का नहीं व्यापार,
उसकी विकलता है;
राग वीणा की नहीं झंकार,
उसकी विकलता है;
भावनाओं का मधुर आधार
सांसो से विनिर्मित,
गीत कवि-उर का नहीं उपहार,
उसकी विकलता है।

- हरिवंशराय बच्चन
संग्रह: आकुल अंतर

O sAgar _ ओ सागर

O sAgar! mai tumsE _ ओ सागर ! मैं तुमसे

Poetry on Ocean (sAgar)::सागर पर कविता










नदियां,
बहकर आती नदियां,
हेल मेलती, खेल खेलती
नदियां।
सागर,
उनसे बना है सागर ।
विस्तीर्ण, प्रगाढ़, नीला
लहरीला सागर।
सुनो सागर !
ओ सागर !
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।
आओ,
सहज ही लिपट जाओ मुझसे
अपने नेह के भुजबल में
आलिंगनबद्ध कर लो।
श्यामल सागर !
मोती ओर मूंगे के कानों वाले
ओ सागर,
मछली की तड़प लेकर आया हूँ
लौटा न देना।
सागर,
खामोश सागर !
उदास सागर !
नदियां,
बोलती हैं नदियां,
कहाँ है सागर ?
कौन कहे,
कहाँ है सागर !

- माया मृग
संग्रह: ...कि जीवन ठहर न जाए /

sAgar mughE apnE_सागर मुझे अपने

sAgar mughE apnE_सागर मुझे अपने

Poetry on Ocean (sAgar)::सागर पर कविता










सागर मुझे अपने
सीने पर बिठाये रखता है
अपनी लहरों के फन पर

उसने खुद ही उठा लिया था मुझे
तट पर अकेला पाकर
मैं ढूँढ़ रहा था शब्द
उसकी गहराई के लिए
बार-बार चट्टानों से टकराकर
फेन सी पसरती उसकी
लहरों के लिए
जीवन के प्रति उसकी
अनंत आत्मीयता के लिए

मैं लौटना नहीं चाहता था
फिर अपने शहर में
लहरें बढ़ती तो छोड़ देता
खुद को उनके साथ
फेंक देतीं वे मुझे
खुरदरी, नुकीली चट्टानों पर
लौटतीं तो दौड़ पड़ता
उनके पीछे-पीछे

मछलियाँ भी होतीं
मेरे साथ इस खेल में
बिल्कुल मेरे वहां होने से अनजान
भीगी रेत पर फिसलती हुईं

अच्छा लगता मुझे
समुद्र के साथ खेलना
डर नहीं लगता
कि वह मुझे डुबो सकता है
वह मुझे पत्थरों पर
पटक कर मार सकता है
मुझे झोंक सकता है
भूखी शार्क के जबड़े में

मैं सम्मोहित-सा
देखता रहता ज़मीन पर
बिछे आसमान को
हवा के झोंकों के साथ
बहते, लहराते हुए
सुबह उसके गर्भ से
निकलता ठंडा सूरज
और दिन भर जलकर
अपने ही ताप से व्याकुल
थका हुआ बेचारा
अपना रथ छोड़
सागर में उतर जाता चुपचाप

सागर के पास होकर
सागर ही हो जाता मैं
विशाल और असीम
मेरे भीतर होती लहरें
सीपियाँ, मछलियां, मूंगे
और वह सब कुछ
जो डूब गया इस
अप्रतिहत जलराशि में
समय के किसी अंतराल में

और तब सागर दहाड़ता
मेरी ही आवाज में
सुनामी आती मेरे भीतर
चक्रवात की तरह
गरजने लगता मेरा मन
तट से दूर तक की
जमीन को निगलने
की चाह से भरपूर
हवाओं की बाँह थामे
उछलता आसमान की ओर
ज्वालामुखी का रक्ततप्त
लावा बहने लगता मेरी नसों में
खदबदाते खून की तरह
धड़कने लगता मैं
समूचा हृदय बनकर

खामोश होता तो
सुनता मुझे अपने भीतर
पूछता नहीं मुझसे
मेरे होने का मतलब
उसे पता होता
मुझे कुछ नहीं चाहिए
सागर से, उसकी सत्ता से
उसकी अपराजेयता से

सागर को आखिर क्या
चाहिए सागर से

- सुभाष राय

jhUmkar jab barsAt_झूमकर जब बरसात

jhUmkar jab barsAt_झूमकर जब बरसात

Poetry on Rain :: बरसात पर कविता












मोर की तरह नाच उठे पेड़ों के पत्ते,
झूमकर जब बरसात हुई।
कई महीनों से जमी धूल और गंदगी,
इसके साथ बही।

चमक उठी हर ऊंची इमारत,
महक उठी हर पेड़ की डाली।
नदियों ने करवट ली और,
समंदर में लहर बन गई।

और इस बार फिर बरसात,
दुखी होकर अपने घर चली गई।
बोली धो ना सकी मैं वो मैला दिल,
जो खून की नदियां बहाता है।
चमका न सकी मैं उस मन को,
जो हर तरफ गंदगी फैलाता है।

रूठी है अब भी धरती मुझसे,
और कहती यही हर बार है।
बहुत है बोझ और गंदगी मुझ पर,
क्यों ना बहा ले गई तुम।

सोचा अबकी बरस जो आऊंगी,
तो इतना बरस जाऊंगी।
हर अच्‍छा और हर बुरा,
साथ में अपने ले जाऊंगी।
लूंगी वो विकराल रूप की,
प्रलय मैं बन जाऊंगी।

बरसूंगी एक बार इस तरह कि,
सुख-दुख सब ले जाऊंगी।
तेरे दिल का बोझ धरती,
एक दिन मैं कम कर जाऊंगी।

सुन ले हर मैले दिल वाले,
खून की नदियां बहाने वाले।
जब मैं अपना रूप दिखाऊंगी,
तुम सबको अपने संग ले जाऊंगी।

ना कोई हथियार होगा,
ना कोई विस्फोट होगा।
ना ही मैं रुकूंगी,
ना कोई मुझे रोकने वाला होगा।

- जया ठोमरे 'कुमावत'

pAnI lEkar bAdal_पानी लेकर बादल

pAnI lEkar bAdal_पानी लेकर बादल

Poetry on bAdal ::बादल पर कविता











पानी लेकर बादल आए,
आसमान पर जमकर छाए।

रिमझिम-रिमझिम बरसेंगे,
गढ़-गढ़कर बादल गाए।

पेड़, पौधे, वृक्ष जहां मिलेंगे
वहां बरसे, बादल इतराए।

मन मयूर सबका नाचे
बादल भी नाचे, शरमाए।

जल ही तो जीवन है
जीवन अपना खूब लुटाए।

- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

AvO pyArE bAdal_आओ प्यारे बादलजी

AvO pyArE bAdal_आओ प्यारे बादलजी

Poetry on Rain ::बारिश पर कविता
















ताल-तलैया भरो लबालब
कुएं-बावड़ी भरो डबाडब
उछले नदी छलाछलजी
आओ प्यारे बादलजी

गर्जन-तर्जन करो ढमाढम
बिजली नर्तन करो चमाचम
धरा बजाए मादलजी
आओ प्यारे बादलजी

खेतों में फसलें मुस्काएं
ठंडी हवा झूम लहराएं
जैसे मां का आंचलजी
आओ प्यारे बादलजी

टर्र-टर्र मेंढक बोले
पीहू-पपीहा रस घोले
मोर हुआ है पागलजी
आओ प्यारे बादलजी

जल अमोल है हम समझें
इसे सहेजना हम समझें
घन बरसे हैं श्यामलजी
आओ प्यारे बादलजी

बूंदें बरसें सुधा समान
सप्त स्वरों की गूंजे तान
मिश्री घोले कोयलजी
आओ प्यारे बादलजी।

- डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'|

badE jOr kE bAdal_बड़े जोर के बादल

badE jOr kE bAdal_बड़े जोर के बादल

Poetry on Rain ::बारिश पर कविता















बड़े जोर के बादल आए
बड़े जोर का पानी॥

अभी खिली थी धूप सुनहरी
चलती थी पुरवैया।
नीलम गाती गीत बाजती
ननमुन की पायलिया॥
बीन रही थी गेहूं आंगन
बैठी बूढ़ी नानी।

टप-टप टप-टप गिरी टपाटप
मोटी-मोटी बूंदें।
लगता जैसे टीन छतों पर
हिरणें आकर कूदे॥
दादी-अम्मा की डूबी है
बाहर रखी मथानी।
छप्पर-छान टपकते बहते
छत वाले परनाले।
गिरती हैं कच्ची दीवारें
हैं प्राणों के लाले॥

कैसे घर ये बने दुबारा
जेब न कौड़ी कानी।

-शोभा शर्मा

kAlA dhOlA bAdal_काला-धोला बादल आया

kAlA dhOlA bAdal_काला-धोला बादल आया

Poetry on Rain ::बरसा‍त पर कविता













काला-धोला
बादल आया
संग ये अपने
बरखा लाया।

रिम-झिम का
संगीत सुनाता
खुशियों का
संदेशा लाया।

जंगल महका
चिड़िया चहकी
नाचा मोर
पपीहा गाया।

काला-धोला
बादल आया
वर्षा की
बौछारें लाया।

- रामशंकर चंचल

Beauty of Nature - प्राकृतिक सौंदर्य

Beauty of Nature Poetry - प्राकृतिक सौंदर्य कविता











नावें और जहाज नदी नद
     सागर-तल पर तरते हैं।
पर नभ पर इनसे भी सुंदर
     जलधर-निकर विचरते हैं॥
इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा
     वृक्षों के शिखरों पर है।
जो धरती से नभ तक रचता
     अद्भुत मार्ग मनोहर है॥
मनमाने निर्मित नदियों के
    पुल से वह अति सुंदर है।
निज कृति का अभिमान व्यर्थ ही
    करता अविवेकी नर है।


 ~ रामनरेश त्रिपाठी (मानसी )

Nature's beauty _ प्रकृति की सुन्दरता

Nature's beauty _ प्रकृति की सुन्दरता









प्रकृति की सुन्दरता देखो
बिखरी चारों ओर है
कहीं पर पीपल कहीं अशोक
कहीं पर बरगद घोर है

लाल गुलाब से सुर्ख है
देखो धरती के दोनों गाल
लिली मोगरा और चमेली
मचा रहे है धमाल

देखो हिम से भरा हिमालय
नंदा की ऊँची पर्वत चोटी
कल कल करती बहती देखो
गंगा यमुना की निर्मल सोती

प्रकृति ने हम सबको दिया
जीवन का अनुपम संदेश
आओ मिटाए मन की दूरी
दूर हटाये कष्ट कलेश !


~ रवि प्रकाश केशरी

chandr (Moon) _ चन्द्र

chandr (Moon) poetry _ चन्द्र (चाँद) कविता








ये सर्व वीदित है चन्द्र
किस प्रकार लील लिया है
तुम्हारी अपरिमित आभा ने
भूतल के अंधकार को
क्यूँ प्रतीक्षारत हो
रात्रि के यायावर के प्रतिपुष्टि की
वो उनका सत्य है
यामिनी का आत्मसमर्पण
करता है तुम्हारे विजय की घोषणा
पाषाण-पथिक की ज्योत्सना अमर रहे
युगों से इंगित कर रही है
इला की सुकुमार सुलोचना
नही अधिकार चंद्रकिरण को
करे शशांक की आलोचना



~ सुलोचना वर्मा

prakriti_प्रकृति

prakriti - प्रकृति

Poetry on Nature ::प्रकृति पर कविता



प्रकृति
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज
नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान
हाँ, यही तो हैं,……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार II


~ डी. के. निवतियाँ