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sab kO swatantr kar dE - सबको स्वतंत्र कर दे

स्वदेश-गीत / रामनरेश त्रिपाठी / संग्रह: मानसी



रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962) हिन्दी भाषा के 'पूर्व छायावाद युग' केकवि थे। कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम 'लरिकाई को प्रेम' है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। 'बा और बापू' उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है।
‘स्वप्न’ पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला।





सबको स्वतंत्र कर दे यह संगठन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में।
हो रक्त बूँद भर भी जब तक हमारे तन में॥
छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

कोई दलित न जग में हमको पड़े दिखाई।
स्वाधीन हों सुखी हों सारे अछूत भाई॥
सबको गले लगा ले यह शुद्ध मन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

अचरज नहीं की साथी भग जायँ छोड़ भय में।
घबरायँ क्यों? खड़े हैं भगवान जो हृदय में॥
धुन एक ध्यान में है, विश्वास है विजय में।
हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में॥
कैसे उजाड़ देगा कोई चमन हमारा?
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।
हरएक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे।
जब तक पहुँच न लेंगे तब तक न साँस लेंगे॥
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे।
गाएँ सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

Beauty of Nature - प्राकृतिक सौंदर्य

Beauty of Nature Poetry - प्राकृतिक सौंदर्य कविता











नावें और जहाज नदी नद
     सागर-तल पर तरते हैं।
पर नभ पर इनसे भी सुंदर
     जलधर-निकर विचरते हैं॥
इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा
     वृक्षों के शिखरों पर है।
जो धरती से नभ तक रचता
     अद्भुत मार्ग मनोहर है॥
मनमाने निर्मित नदियों के
    पुल से वह अति सुंदर है।
निज कृति का अभिमान व्यर्थ ही
    करता अविवेकी नर है।


 ~ रामनरेश त्रिपाठी (मानसी )