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Beauty of Nature - प्राकृतिक सौंदर्य

Beauty of Nature Poetry - प्राकृतिक सौंदर्य कविता











नावें और जहाज नदी नद
     सागर-तल पर तरते हैं।
पर नभ पर इनसे भी सुंदर
     जलधर-निकर विचरते हैं॥
इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा
     वृक्षों के शिखरों पर है।
जो धरती से नभ तक रचता
     अद्भुत मार्ग मनोहर है॥
मनमाने निर्मित नदियों के
    पुल से वह अति सुंदर है।
निज कृति का अभिमान व्यर्थ ही
    करता अविवेकी नर है।


 ~ रामनरेश त्रिपाठी (मानसी )

Nature's beauty _ प्रकृति की सुन्दरता

Nature's beauty _ प्रकृति की सुन्दरता









प्रकृति की सुन्दरता देखो
बिखरी चारों ओर है
कहीं पर पीपल कहीं अशोक
कहीं पर बरगद घोर है

लाल गुलाब से सुर्ख है
देखो धरती के दोनों गाल
लिली मोगरा और चमेली
मचा रहे है धमाल

देखो हिम से भरा हिमालय
नंदा की ऊँची पर्वत चोटी
कल कल करती बहती देखो
गंगा यमुना की निर्मल सोती

प्रकृति ने हम सबको दिया
जीवन का अनुपम संदेश
आओ मिटाए मन की दूरी
दूर हटाये कष्ट कलेश !


~ रवि प्रकाश केशरी

prakriti_प्रकृति

prakriti - प्रकृति

Poetry on Nature ::प्रकृति पर कविता



प्रकृति
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज
नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान
हाँ, यही तो हैं,……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार II


~ डी. के. निवतियाँ