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chandr (Moon) _ चन्द्र

chandr (Moon) poetry _ चन्द्र (चाँद) कविता








ये सर्व वीदित है चन्द्र
किस प्रकार लील लिया है
तुम्हारी अपरिमित आभा ने
भूतल के अंधकार को
क्यूँ प्रतीक्षारत हो
रात्रि के यायावर के प्रतिपुष्टि की
वो उनका सत्य है
यामिनी का आत्मसमर्पण
करता है तुम्हारे विजय की घोषणा
पाषाण-पथिक की ज्योत्सना अमर रहे
युगों से इंगित कर रही है
इला की सुकुमार सुलोचना
नही अधिकार चंद्रकिरण को
करे शशांक की आलोचना



~ सुलोचना वर्मा

prakriti_प्रकृति

prakriti - प्रकृति

Poetry on Nature ::प्रकृति पर कविता



प्रकृति
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज
नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान
हाँ, यही तो हैं,……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार II


~ डी. के. निवतियाँ