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muhAvarE aur lOkOktiyAn - मुहावरे और लोकोक्तियाँ

26. मुहावरे और लोकोक्तियाँ (muhAvarE aur lOkOktiyAn)

मुहावरा :- कोई भी ऐसा वाक्यांश जो अपने साधारण अर्थ को छोड़कर किसी विशेष अर्थ को व्यक्त करे उसे मुहावरा कहते हैं।
लोकोक्ति- लोकोक्तियाँ लोक-अनुभव से बनती हैं। किसी समाज ने जो कुछ अपने लंबे अनुभव से सीखा है उसे एक वाक्य में बाँध दिया है। ऐसे वाक्यों को ही लोकोक्ति कहते हैं। इसे कहावत, जनश्रुति आदि भी कहते हैं।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर- मुहावरा वाक्यांश है और इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता। लोकोक्ति संपूर्ण वाक्य है और इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है। जैसे-‘होश उड़ जाना’ मुहावरा है। ‘बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी’ लोकोक्ति है।
कुछ प्रचलित मुहावरे:-

1. अंग संबंधी मुहावरे

1. अंग छूटा- (कसम खाना) मैं अंग छूकर कहता हूँ साहब, मैने पाजेब नहीं देखी।
2. अंग-अंग मुसकाना-(बहुत प्रसन्न होना)- आज उसका अंग-अंग मुसकरा रहा था।
3. अंग-अंग टूटना-(सारे बदन में दर्द होना)-इस ज्वर ने तो मेरा अंग-अंग तोड़कर रख दिया।
4. अंग-अंग ढीला होना-(बहुत थक जाना)- तुम्हारे साथ कल चलूँगा। आज तो मेरा अंग-अंग ढीला हो रहा है।

2. अक्ल-संबंधी मुहावरे

1. अक्ल का दुश्मन-(मूर्ख)- वह तो निरा अक्ल का दुश्मन निकला।
2. अक्ल चकराना-(कुछ समझ में न आना)-प्रश्न-पत्र देखते ही मेरी अक्ल चकरा गई।
3. अक्ल के पीछे लठ लिए फिरना (समझाने पर भी न मानना)- तुम तो सदैव अक्ल के पीछे लठ लिए फिरते हो।
4. अक्ल के घोड़े दौड़ाना-(तरह-तरह के विचार करना)- बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने अक्ल के घोड़े दौड़ाए, तब कहीं वे अणुबम बना सके।

3. आँख-संबंधी मुहावरे

1. आँख दिखाना-(गुस्से से देखना)- जो हमें आँख दिखाएगा, हम उसकी आँखें फोड़ देगें।
2. आँखों में गिरना-(सम्मानरहित होना)- कुरसी की होड़ ने जनता सरकार को जनता की आँखों में गिरा दिया।
3. आँखों में धूल झोंकना-(धोखा देना)- शिवाजी मुगल पहरेदारों की आँखों में धूल झोंककर बंदीगृह से बाहर निकल गए।
4. आँख चुराना-(छिपना)- आजकल वह मुझसे आँखें चुराता फिरता है।
5. आँख मारना-(इशारा करना)-गवाह मेरे भाई का मित्र निकला, उसने उसे आँख मारी, अन्यथा वह मेरे विरुद्ध गवाही दे देता।
6. आँख तरसना-(देखने के लालायित होना)- तुम्हें देखने के लिए तो मेरी आँखें तरस गई।
7. आँख फेर लेना-(प्रतिकूल होना)- उसने आजकल मेरी ओर से आँखें फेर ली हैं।
8. आँख बिछाना-(प्रतीक्षा करना)- लोकनायक जयप्रकाश नारायण जिधर जाते थे उधर ही जनता उनके लिए आँखें बिछाए खड़ी होती थी।
9. आँखें सेंकना-(सुंदर वस्तु को देखते रहना)- आँख सेंकते रहोगे या कुछ करोगे भी
10. आँखें चार होना-(प्रेम होना,आमना-सामना होना)- आँखें चार होते ही वह खिड़की पर से हट गई।
11. आँखों का तारा-(अतिप्रिय)-आशीष अपनी माँ की आँखों का तारा है।
12. आँख उठाना-(देखने का साहस करना)- अब वह कभी भी मेरे सामने आँख नहीं उठा सकेगा।
13. आँख खुलना-(होश आना)- जब संबंधियों ने उसकी सारी संपत्ति हड़प ली तब उसकी आँखें खुलीं।
14. आँख लगना-(नींद आना अथवा व्यार होना)- बड़ी मुश्किल से अब उसकी आँख लगी है। आजकल आँख लगते देर नहीं होती।
15. आँखों पर परदा पड़ना-(लोभ के कारण सचाई न दीखना)- जो दूसरों को ठगा करते हैं, उनकी आँखों पर परदा पड़ा हुआ है। इसका फल उन्हें अवश्य मिलेगा।
16. आँखों का काटा-(अप्रिय व्यक्ति)- अपनी कुप्रवृत्तियों के कारण राजन पिताजी की आँखों का काँटा बन गया।
17. आँखों में समाना-(दिल में बस जाना)- गिरधर मीरा की आँखों में समा गया।

4. कलेजा-संबंधी कुछ मुहावरे

1. कलेजे पर हाथ रखना-(अपने दिल से पूछना)- अपने कलेजे पर हाथ रखकर कहो कि क्या तुमने पैन नहीं तोड़ा।
2. कलेजा जलना-(तीव्र असंतोष होना)- उसकी बातें सुनकर मेरा कलेजा जल उठा।
3. कलेजा ठंडा होना-(संतोष हो जाना)- डाकुओं को पकड़ा हुआ देखकर गाँव वालों का कलेजा ठंढा हो गया।
4. कलेजा थामना-(जी कड़ा करना)- अपने एकमात्र युवा पुत्र की मृत्यु पर माता-पिता कलेजा थामकर रह गए।
5. कलेजे पर पत्थर रखना-(दुख में भी धीरज रखना)- उस बेचारे की क्या कहते हों, उसने तो कलेजे पर पत्थर रख लिया है।
6. कलेजे पर साँप लोटना-(ईर्ष्या से जलना)- श्रीराम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर दासी मंथरा के कलेजे पर साँप लोटने लगा।

5. कान-संबंधी कुछ मुहावरे

1. कान भरना-(चुगली करना)- अपने साथियों के विरुद्ध अध्यापक के कान भरने वाले विद्यार्थी अच्छे नहीं होते।
2. कान कतरना-(बहुत चतुर होना)- वह तो अभी से बड़े-बड़ों के कान कतरता है।
3. कान का कच्चा-(सुनते ही किसी बात पर विश्वास करना)- जो मालिक कान के कच्चे होते हैं वे भले कर्मचारियों पर भी विश्वास नहीं करते।
4. कान पर जूँ तक न रेंगना-(कुछ असर न होना)-माँ ने गौरव को बहुत समझाया, किन्तु उसके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी।
5. कानोंकान खबर न होना-(बिलकुल पता न चलना)-सोने के ये बिस्कुट ले जाओ, किसी को कानोंकान खबर न हो।

6. नाक-संबंधी कुछ मुहावरे

1. नाक में दम करना-(बहुत तंग करना)- आतंकवादियों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है।
2. नाक रखना-(मान रखना)- सच पूछो तो उसने सच कहकर मेरी नाक रख ली।
3. नाक रगड़ना-(दीनता दिखाना)-गिरहकट ने सिपाही के सामने खूब नाक रगड़ी, पर उसने उसे छोड़ा नहीं।
4. नाक पर मक्खी न बैठने देना-(अपने पर आँच न आने देना)-कितनी ही मुसीबतें उठाई, पर उसने नाक पर मक्खी न बैठने दी।
5. नाक कटना-(प्रतिष्ठा नष्ट होना)- अरे भैया आजकल की औलाद तो खानदान की नाक काटकर रख देती है।

7. मुँह-संबंधी कुछ मुहावरे

1. मुँह की खाना-(हार मानना)-पड़ोसी के घर के मामले में दखल देकर हरद्वारी को मुँह की खानी पड़ी।
2. मुँह में पानी भर आना-(दिल ललचाना)- लड्डुओं का नाम सुनते ही पंडितजी के मुँह में पानी भर आया।
3. मुँह खून लगना-(रिश्वत लेने की आदत पड़ जाना)- उसके मुँह खून लगा है, बिना लिए वह काम नहीं करेगा।
4. मुँह छिपाना-(लज्जित होना)- मुँह छिपाने से काम नहीं बनेगा, कुछ करके भी दिखाओ।
5. मुँह रखना-(मान रखना)-मैं तुम्हारा मुँह रखने के लिए ही प्रमोद के पास गया था, अन्यथा मुझे क्या आवश्यकता थी।
6. मुँहतोड़ जवाब देना-(कड़ा उत्तर देना)- श्याम मुँहतोड़ जवाब सुनकर फिर कुछ नहीं बोला।
7. मुँह पर कालिख पोतना-(कलंक लगाना)-बेटा तुम्हारे कुकर्मों ने मेरे मुँह पर कालिख पोत दी है।
8. मुँह उतरना-(उदास होना)-आज तुम्हारा मुँह क्यों उतरा हुआ है।
9. मुँह ताकना-(दूसरे पर आश्रित होना)-अब गेहूँ के लिए हमें अमेरिका का मुँह नहीं ताकना पड़ेगा।
10. मुँह बंद करना-(चुप कर देना)-आजकल रिश्वत ने बड़े-बड़े अफसरों का मुँह बंद कर रखा है।

8. दाँत-संबंधी मुहावरे

1. दाँत पीसना-(बहुत ज्यादा गुस्सा करना)- भला मुझ पर दाँत क्यों पीसते हो? शीशा तो शंकर ने तोड़ा है।
2. दाँत खट्टे करना-(बुरी तरह हराना)- भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के दाँत खट्टे कर दिए।
3. दाँत काटी रोटी-(घनिष्ठता, पक्की मित्रता)- कभी राम और श्याम में दाँत काटी रोटी थी पर आज एक-दूसरे के जानी दुश्मन है।

9. गरदन-संबंधी मुहावरे

1. गरदन झुकाना-(लज्जित होना)- मेरा सामना होते ही उसकी गरदन झुक गई।
2. गरदन पर सवार होना-(पीछे पड़ना)- मेरी गरदन पर सवार होने से तुम्हारा काम नहीं बनने वाला है।
3. गरदन पर छुरी फेरना-(अत्याचार करना)-उस बेचारे की गरदन पर छुरी फेरते तुम्हें शरम नहीं आती, भगवान इसके लिए तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेंगे।

10. गले-संबंधी मुहावरे

1. गला घोंटना-(अत्याचार करना)- जो सरकार गरीबों का गला घोंटती है वह देर तक नहीं टिक सकती।
2. गला फँसाना-(बंधन में पड़ना)- दूसरों के मामले में गला फँसाने से कुछ हाथ नहीं आएगा।
3. गले मढ़ना-(जबरदस्ती किसी को कोई काम सौंपना)- इस बुद्धू को मेरे गले मढ़कर लालाजी ने तो मुझे तंग कर डाला है।
4. गले का हार-(बहुत प्यारा)- तुम तो उसके गले का हार हो, भला वह तुम्हारे काम को क्यों मना करने लगा।

11. सिर-संबंधी मुहावरे

1. सिर पर भूत सवार होना-(धुन लगाना)-तुम्हारे सिर पर तो हर समय भूत सवार रहता है।
2. सिर पर मौत खेलना-(मृत्यु समीप होना)- विभीषण ने रावण को संबोधित करते हुए कहा, ‘भैया ! मुझे क्या डरा रहे हो ? तुम्हारे सिर पर तो मौत खेल रही है‘।
3. सिर पर खून सवार होना-(मरने-मारने को तैयार होना)- अरे, बदमाश की क्या बात करते हो ? उसके सिर पर तो हर समय खून सवार रहता है।
4. सिर-धड़ की बाजी लगाना-(प्राणों की भी परवाह न करना)- भारतीय वीर देश की रक्षा के लिए सिर-धड़ की बाजी लगा देते हैं।
5. सिर नीचा करना-(लजा जाना)-मुझे देखते ही उसने सिर नीचा कर लिया।

12. हाथ-संबंधी मुहावरे

1. हाथ खाली होना-(रुपया-पैसा न होना)- जुआ खेलने के कारण राजा नल का हाथ खाली हो गया था।
2. हाथ खींचना-(साथ न देना)-मुसीबत के समय नकली मित्र हाथ खींच लेते हैं।
3. हाथ पे हाथ धरकर बैठना-(निकम्मा होना)- उद्यमी कभी भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठते हैं, वे तो कुछ करके ही दिखाते हैं।
4. हाथों के तोते उड़ना-(दुख से हैरान होना)- भाई के निधन का समाचार पाते ही उसके हाथों के तोते उड़ गए।
5. हाथोंहाथ-(बहुत जल्दी)-यह काम हाथोंहाथ हो जाना चाहिए।
6. हाथ मलते रह जाना-(पछताना)- जो बिना सोचे-समझे काम शुरू करते है वे अंत में हाथ मलते रह जाते हैं।
7. हाथ साफ करना-(चुरा लेना)- ओह ! किसी ने मेरी जेब पर हाथ साफ कर दिया।
8. हाथ-पाँव मारना-(प्रयास करना)- हाथ-पाँव मारने वाला व्यक्ति अंत में अवश्य सफलता प्राप्त करता है।
9. हाथ डालना-(शुरू करना)- किसी भी काम में हाथ डालने से पूर्व उसके अच्छे या बुरे फल पर विचार कर लेना चाहिए।

13. हवा-संबंधी मुहावरे

1. हवा लगना-(असर पड़ना)-आजकल भारतीयों को भी पश्चिम की हवा लग चुकी है।
2. हवा से बातें करना-(बहुत तेज दौड़ना)- राणा प्रताप ने ज्यों ही लगाम हिलाई, चेतक हवा से बातें करने लगा।
3. हवाई किले बनाना-(झूठी कल्पनाएँ करना)- हवाई किले ही बनाते रहोगे या कुछ करोगे भी ?
4. हवा हो जाना-(गायब हो जाना)- देखते-ही-देखते मेरी साइकिल न जाने कहाँ हवा हो गई ?

14. पानी-संबंधी मुहावरे

1. पानी-पानी होना-(लज्जित होना)-ज्योंही सोहन ने माताजी के पर्स में हाथ डाला कि ऊपर से माताजी आ गई। बस, उन्हें देखते ही वह पानी-पानी हो गया।
2. पानी में आग लगाना-(शांति भंग कर देना)-तुमने तो सदा पानी में आग लगाने का ही काम किया है।
3. पानी फेर देना-(निराश कर देना)-उसने तो मेरी आशाओं पर पानी पेर दिया।
4. पानी भरना-(तुच्छ लगना)-तुमने तो जीवन-भर पानी ही भरा है।

15. कुछ मिले-जुले मुहावरे

1. अँगूठा दिखाना-(देने से साफ इनकार कर देना)-सेठ रामलाल ने धर्मशाला के लिए पाँच हजार रुपए दान देने को कहा था, किन्तु जब मैनेजर उनसे मांगने गया तो उन्होंने अँगूठा दिखा दिया।
2. अगर-मगर करना-(टालमटोल करना)-अगर-मगर करने से अब काम चलने वाला नहीं है। बंधु !
3. अंगारे बरसाना-(अत्यंत गुस्से से देखना)-अभिमन्यु वध की सूचना पाते ही अर्जुन के नेत्र अंगारे बरसाने लगे।
4. आड़े हाथों लेना-(अच्छी तरह काबू करना)-श्रीकृष्ण ने कंस को आड़े हाथों लिया।
5. आकाश से बातें करना-(बहुत ऊँचा होना)-टी.वी.टावर तो आकाश से बाते करती है।
6. ईद का चाँद-(बहुत कम दीखना)-मित्र आजकल तो तुम ईद का चाँद हो गए हो, कहाँ रहते हो ?
7. उँगली पर नचाना-(वश में करना)-आजकल की औरतें अपने पतियों को उँगलियों पर नचाती हैं।
8. कलई खुलना-(रहस्य प्रकट हो जाना)-उसने तो तुम्हारी कलई खोलकर रख दी।
9. काम तमाम करना-(मार देना)- रानी लक्ष्मीबाई ने पीछा करने वाले दोनों अंग्रेजों का काम तमाम कर दिया।
10. कुत्ते की मौत करना-(बुरी तरह से मरना)-राष्ट्रद्रोही सदा कुत्ते की मौत मरते हैं।
11. कोल्हू का बैल-(निरंतर काम में लगे रहना)-कोल्हू का बैल बनकर भी लोग आज भरपेट भोजन नहीं पा सकते।
12. खाक छानना-(दर-दर भटकना)-खाक छानने से तो अच्छा है एक जगह जमकर काम करो।
13. गड़े मुरदे उखाड़ना-(पिछली बातों को याद करना)-गड़े मुरदे उखाड़ने से तो अच्छा है कि अब हम चुप हो जाएँ।
14. गुलछर्रे उड़ाना-(मौज करना)-आजकल तुम तो दूसरे के माल पर गुलछर्रे उड़ा रहे हो।
15. घास खोदना-(फुजूल समय बिताना)-सारी उम्र तुमने घास ही खोदी है।
16. चंपत होना-(भाग जाना)-चोर पुलिस को देखते ही चंपत हो गए।
17. चौकड़ी भरना-(छलाँगे लगाना)-हिरन चौकड़ी भरते हुए कहीं से कहीं जा पहुँचे।
18. छक्के छुडा़ना-(बुरी तरह पराजित करना)-पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी के छक्के छुड़ा दिए।
19. टका-सा जवाब देना-(कोरा उत्तर देना)-आशा थी कि कहीं वह मेरी जीविका का प्रबंध कर देगा, पर उसने तो देखते ही टका-सा जवाब दे दिया।
20. टोपी उछालना-(अपमानित करना)-मेरी टोपी उछालने से उसे क्या मिलेगा?
21. तलवे चाटने-(खुशामद करना)-तलवे चाटकर नौकरी करने से तो कहीं डूब मरना अच्छा है।
22. थाली का बैंगन-(अस्थिर विचार वाला)- जो लोग थाली के बैगन होते हैं, वे किसी के सच्चे मित्र नहीं होते।
23. दाने-दाने को तरसना-(अत्यंत गरीब होना)-बचपन में मैं दाने-दाने को तरसता फिरा, आज ईश्वर की कृपा है।
24. दौड़-धूप करना-(कठोर श्रम करना)-आज के युग में दौड़-धूप करने से ही कुछ काम बन पाता है।
25. धज्जियाँ उड़ाना-(नष्ट-भ्रष्ट करना)-यदि कोई भी राष्ट्र हमारी स्वतंत्रता को हड़पना चाहेगा तो हम उसकी धज्जियाँ उड़ा देंगे।
26. नमक-मिर्च लगाना-(बढ़ा-चढ़ाकर कहना)-आजकल समाचारपत्र किसी भी बात को इस प्रकार नमक-मिर्च लगाकर लिखते हैं कि जनसाधारण उस पर विश्वास करने लग जाता है।
27. नौ-दो ग्यारह होना-(भाग जाना)- बिल्ली को देखते ही चूहे नौ-दो ग्यारह हो गए। 28. फूँक-फूँककर कदम रखना-(सोच-समझकर कदम बढ़ाना)-जवानी में फूँक-फूँककर कदम रखना चाहिए।
29. बाल-बाल बचना-(बड़ी कठिनाई से बचना)-गाड़ी की टक्कर होने पर मेरा मित्र बाल-बाल बच गया।
30. भाड़ झोंकना-(योंही समय बिताना)-दिल्ली में आकर भी तुमने तीस साल तक भाड़ ही झोंका है।
31. मक्खियाँ मारना-(निकम्मे रहकर समय बिताना)-यह समय मक्खियाँ मारने का नहीं है, घर का कुछ काम-काज ही कर लो।
32. माथा ठनकना-(संदेह होना)- सिंह के पंजों के निशान रेत पर देखते ही गीदड़ का माथा ठनक गया।
33. मिट्टी खराब करना-(बुरा हाल करना)-आजकल के नौजवानों ने बूढ़ों की मिट्टी खराब कर रखी है।
34. रंग उड़ाना-(घबरा जाना)-काले नाग को देखते ही मेरा रंग उड़ गया।
35. रफूचक्कर होना-(भाग जाना)-पुलिस को देखते ही बदमाश रफूचक्कर हो गए।
36. लोहे के चने चबाना-(बहुत कठिनाई से सामना करना)- मुगल सम्राट अकबर को राणाप्रताप के साथ टक्कर लेते समय लोहे के चने चबाने पड़े।
37. विष उगलना-(बुरा-भला कहना)-दुर्योधन को गांडीव धनुष का अपमान करते देख अर्जुन विष उगलने लगा।
38. श्रीगणेश करना-(शुरू करना)-आज बृहस्पतिवार है, नए वर्ष की पढाई का श्रीगणेश कर लो।
39. हजामत बनाना-(ठगना)-ये हिप्पी न जाने कितने भारतीयों की हजामत बना चुके हैं।
40. शैतान के कान कतरना-(बहुत चालाक होना)-तुम तो शैतान के भी कान कतरने वाले हो, बेचारे रामनाथ की तुम्हारे सामने बिसात ही क्या है ?
41. राई का पहाड़ बनाना-(छोटी-सी बात को बहुत बढ़ा देना)- तनिक-सी बात के लिए तुमने राई का पहाड़ बना दिया।

कुछ प्रचलित लोकोक्तियाँ

1. अधजल गगरी छलकत जाए-(कम गुण वाला व्यक्ति दिखावा बहुत करता है)- श्याम बातें तो ऐसी करता है जैसे हर विषय में मास्टर हो, वास्तव में उसे किसी विषय का भी पूरा ज्ञान नहीं-अधजल गगरी छलकत जाए।
2. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत-(समय निकल जाने पर पछताने से क्या लाभ)- सारा साल तुमने पुस्तकें खोलकर नहीं देखीं। अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
3. आम के आम गुठलियों के दाम-(दुगुना लाभ)- हिन्दी पढ़ने से एक तो आप नई भाषा सीखकर नौकरी पर पदोन्नति कर सकते हैं, दूसरे हिन्दी के उच्च साहित्य का रसास्वादन कर सकते हैं, इसे कहते हैं-आम के आम गुठलियों के दाम।
4. ऊँची दुकान फीका पकवान-(केवल ऊपरी दिखावा करना)- कनॉटप्लेस के अनेक स्टोर बड़े प्रसिद्ध है, पर सब घटिया दर्जे का माल बेचते हैं। सच है, ऊँची दुकान फीका पकवान।
5. घर का भेदी लंका ढाए-(आपसी फूट के कारण भेद खोलना)-कई व्यक्ति पहले कांग्रेस में थे, अब जनता (एस) पार्टी में मिलकर काग्रेंस की बुराई करते हैं। सच है, घर का भेदी लंका ढाए।
6. जिसकी लाठी उसकी भैंस-(शक्तिशाली की विजय होती है)- अंग्रेजों ने सेना के बल पर बंगाल पर अधिकार कर लिया था-जिसकी लाठी उसकी भैंस।
7. जल में रहकर मगर से वैर-(किसी के आश्रय में रहकर उससे शत्रुता मोल लेना)- जो भारत में रहकर विदेशों का गुणगान करते हैं, उनके लिए वही कहावत है कि जल में रहकर मगर से वैर।
8. थोथा चना बाजे घना-(जिसमें सत नहीं होता वह दिखावा करता है)- गजेंद्र ने अभी दसवीं की परीक्षा पास की है, और आलोचना अपने बड़े-बड़े गुरुजनों की करता है। थोथा चना बाजे घना।
9. दूध का दूध पानी का पानी-(सच और झूठ का ठीक फैसला)- सरपंच ने दूध का दूध,पानी का पानी कर दिखाया, असली दोषी मंगू को ही दंड मिला।
10. दूर के ढोल सुहावने-(जो चीजें दूर से अच्छी लगती हों)- उनके मसूरी वाले बंगले की बहुत प्रशंसा सुनते थे किन्तु वहाँ दुर्गंध के मारे तंग आकर हमारे मुख से निकल ही गया-दूर के ढोल सुहावने।
11. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी-(कारण के नष्ट होने पर कार्य न होना)- सारा दिन लड़के आमों के लिए पत्थर मारते रहते थे। हमने आँगन में से आम का वृक्ष की कटवा दिया। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।
12. नाच न जाने आँगन टेढ़ा-(काम करना नहीं आना और बहाने बनाना)-जब रवींद्र ने कहा कि कोई गीत सुनाइए, तो सुनील बोला, ‘आज समय नहीं है’। फिर किसी दिन कहा तो कहने लगा, ‘आज मूड नहीं है’। सच है, नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
13. बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख-(माँगे बिना अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो जाती है, माँगने पर साधारण भी नहीं मिलती)- अध्यापकों ने माँगों के लिए हड़ताल कर दी, पर उन्हें क्या मिला ? इनसे तो बैक कर्मचारी अच्छे रहे, उनका भत्ता बढ़ा दिया गया। बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख।
14. मान न मान मैं तेरा मेहमान-(जबरदस्ती किसी का मेहमान बनना)-एक अमेरिकन कहने लगा, मैं एक मास आपके पास रहकर आपके रहन-सहन का अध्ययन करूँगा। मैंने मन में कहा, अजब आदमी है, मान न मान मैं तेरा मेहमान।
15. मन चंगा तो कठौती में गंगा-(यदि मन पवित्र है तो घर ही तीर्थ है)-भैया रामेश्वरम जाकर क्या करोगे ? घर पर ही ईशस्तुति करो। मन चंगा तो कठौती में गंगा।
16. दोनों हाथों में लड्डू-(दोनों ओर लाभ)- महेंद्र को इधर उच्च पद मिल रहा था और उधर अमेरिका से वजीफा उसके तो दोनों हाथों में लड्डू थे।
17. नया नौ दिन पुराना सौ दिन-(नई वस्तुओं का विश्वास नहीं होता, पुरानी वस्तु टिकाऊ होती है)- अब भारतीय जनता का यह विश्वास है कि इस सरकार से तो पहली सरकार फिर भी अच्छी थी। नया नौ दिन, पुराना नौ दिन।
18. बगल में छुरी मुँह में राम-राम-(भीतर से शत्रुता और ऊपर से मीठी बातें)- साम्राज्यवादी आज भी कुछ राष्ट्रों को उन्नति की आशा दिलाकर उन्हें अपने अधीन रखना चाहते हैं, परन्तु अब सभी देश समझ गए हैं कि उनकी बगल में छुरी और मुँह में राम-राम है।
19. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-(शरारती समझाने से वश में नहीं आते)- सलीम बड़ा शरारती है, पर उसके अब्बा उसे प्यार से समझाना चाहते हैं। किन्तु वे नहीं जानते कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
20. सहज पके जो मीठा होय-(धीरे-धीरे किए जाने वाला कार्य स्थायी फलदायक होता है)- विनोबा भावे का विचार था कि भूमि सुधार धीरे-धीरे और शांतिपूर्वक लाना चाहिए क्योंकि सहज पके सो मीठा होय।
21. साँप मरे लाठी न टूटे-(हानि भी न हो और काम भी बन जाए)- घनश्याम को उसकी दुष्टता का ऐसा मजा चखाओ कि बदनामी भी न हो और उसे दंड भी मिल जाए। बस यही समझो कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
22. अंत भला सो भला-(जिसका परिणाम अच्छा है, वह सर्वोत्तम है)- श्याम पढ़ने में कमजोर था, लेकिन परीक्षा का समय आते-आते पूरी तैयारी कर ली और परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसी को कहते हैं अंत भला सो भला।
23. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-(बहुत कंजूस होना)-महेंद्रपाल अपने बेटे को अच्छे कपड़े तक भी सिलवाकर नहीं देता। उसका तो यही सिद्धान्त है कि चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।
24. सौ सुनार की एक लुहार की-(निर्बल की सैकड़ों चोटों की सबल एक ही चोट से मुकाबला कर देते है)- कौरवों ने भीम को बहुत तंग किया तो वह कौरवों को गदा से पीटने लगा-सौ सुनार की एक लुहार की।
25. सावन हरे न भादों सूखे-(सदैव एक-सी स्थिति में रहना)- गत चार वर्षों में हमारे वेतन व भत्ते में एक सौ रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। उधर 25 प्रतिशत दाम बढ़ गए हैं-भैया हमारी तो यही स्थिति रही है कि सावन हरे न भादों सूखे।

aSuddh vakyOm kE Suddh rUp - अशुद्ध वाक्यों के शुद्ध रूप

25. अशुद्ध वाक्यों के शुद्ध रूप (aSuddh vakyOm kE Suddh rUp)

(1) वचन-संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध   -  शुद्ध
1. पाकिस्तान ने गोले और तोपों से आक्रमण किया।
    पाकिस्तान ने गोलों और तोपों से आक्रमण किया।
2. उसने अनेकों ग्रंथ लिखे।
    उसने अनेक ग्रंथ लिखे।
3. महाभारत अठारह दिनों तक चलता रहा।
    महाभारत अठारह दिन तक चलता रहा।
4. तेरी बात सुनते-सुनते कान पक गए।
    तेरी बातें सुनते-सुनते कान पक गए।
5. पेड़ों पर तोता बैठा है।
    पेड़ पर तोता बैठा है।
(2) लिंग संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध   -  शुद्ध
1. उसने संतोष का साँस ली।
    उसने संतोष की साँस ली।
2. सविता ने जोर से हँस दिया।
    सविता जोर से हँस दी।
3. मुझे बहुत आनंद आती है।
    मुझे बहुत आनंद आता है।
4. वह धीमी स्वर में बोला।
    वह धीमे स्वर में बोला।
5. राम और सीता वन को गई।
    राम और सीता वन को गए।
(3) विभक्ति-संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध   -  शुद्ध
1. मैं यह काम नहीं किया हूँ।
    मैंने यह काम नहीं किया है।
2. मैं पुस्तक को पढ़ता हूँ।
    मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
3. हमने इस विषय को विचार किया।
    हमने इस विषय पर विचार किया
4. आठ बजने को दस मिनट है।
     आठ बजने में दस मिनट है।
5. वह देर में सोकर उठता है।
    वह देर से सोकर उठता है।
(4) संज्ञा संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध   -  शुद्ध
1. मैं रविवार के दिन तुम्हारे घर आऊँगा।
    मैं रविवार को तुम्हारे घर आऊँगा।
2. कुत्ता रेंकता है।
    कुत्ता भौंकता है।
3. मुझे सफल होने की निराशा है।
    मुझे सफल होने की आशा नहीं है।
4. गले में गुलामी की बेड़ियाँ पड़ गई।
    पैरों में गुलामी की बेड़ियाँ पड़ गई।
(5) सर्वनाम की अशुद्धियाँ-
अशुद्ध   -  शुद्ध
1. गीता आई और कहा।
    गीता आई और उसने कहा।
2. मैंने तेरे को कितना समझाया।
    मैंने तुझे कितना समझाया।
3. वह क्या जाने कि मैं कैसे जीवित हूँ।
    वह क्या जाने कि मैं कैसे जी रहा हूँ।
(6) विशेषण-संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध शुद्ध
1. किसी और लड़के को बुलाओ। किसी दूसरे लड़के को बुलाओ।
2. सिंह बड़ा बीभत्स होता है। सिंह बड़ा भयानक होता है।
3. उसे भारी दुख हुआ। उसे बहुत दुख हुआ।
4. सब लोग अपना काम करो। सब लोग अपना-अपना काम करो।
(7) क्रिया-संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध शुद्ध
1. क्या यह संभव हो सकता है ? क्या यह संभव है ?
2. मैं दर्शन देने आया था। मैं दर्शन करने आया था।
3. वह पढ़ना माँगता है। वह पढ़ना चाहता है।
4. बस तुम इतने रूठ उठे बस, तुम इतने में रूठ गए।
5. तुम क्या काम करता है ? तुम क्या काम करते हो ?
(8) मुहावरे-संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध   -  शुद्ध
1. युग की माँग का यह बीड़ा कौन चबाता है|
    युग की माँग का यह बीड़ा कौन उठाता है।
2. वह श्याम पर बरस गया।
    वह श्याम पर बरस पड़ा।
3. उसकी अक्ल चक्कर खा गई।
    उसकी अक्ल चकरा गई।
4. उस पर घड़ों पानी गिर गया।
    उस पर घड़ों पानी पड़ गया।
(9) क्रिया-विशेषण-संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध   -  शुद्ध
1. वह लगभग दौड़ रहा था।
    वह दौड़ रहा था।
2. सारी रात भर मैं जागता रहा।
    मैं सारी रात जागता रहा।
3. तुम बड़ा आगे बढ़ गया।
    तुम बहुत आगे बढ़ गए.
4. इस पर्वतीय क्षेत्र में सर्वस्व शांति है।
    इस पर्वतीय क्षेत्र में सर्वत्र शांति है।

vAkya prakaraN - वाक्य प्रकरण

24. वाक्य-प्रकरण (vAkya-prakaraN)

वाक्य :- 
एक विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाला शब्द-समूह वाक्य कहलाता है। जैसे- 
1. श्याम दूध पी रहा है। 
2. मैं भागते-भागते थक गया। 
3. यह कितना सुंदर उपवन है। 
4. ओह ! आज तो गरमी के कारण प्राण निकले जा रहे हैं। 
5. वह मेहनत करता तो पास हो जाता।
ये सभी मुख से निकलने वाली सार्थक ध्वनियों के समूह हैं। अतः ये वाक्य हैं। वाक्य भाषा का चरम अवयव है।

वाक्य-खंड

वाक्य के प्रमुख दो खंड हैं-
1. उद्देश्य।
2. विधेय।
1. उद्देश्य- जिसके विषय में कुछ कहा जाता है उसे सूचकि करने वाले शब्द को उद्देश्य कहते हैं। जैसे-
1. अर्जुन ने जयद्रथ को मारा।
2. कुत्ता भौंक रहा है।
3. तोता डाल पर बैठा है।
इनमें अर्जुन ने, कुत्ता, तोता उद्देश्य हैं; इनके विषय में कुछ कहा गया है। अथवा यों कह सकते हैं कि वाक्य में जो कर्ता हो उसे उद्देश्य कह सकते हैं क्योंकि किसी क्रिया को करने के कारण वही मुख्य होता है।
2. विधेय- उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, अथवा उद्देश्य (कर्ता) जो कुछ कार्य करता है वह सब विधेय कहलाता है। जैसे-
1. अर्जुन ने जयद्रथ को मारा।
2. कुत्ता भौंक रहा है।
3. तोता डाल पर बैठा है।
इनमें ‘जयद्रथ को मारा’, ‘भौंक रहा है’, ‘डाल पर बैठा है’ विधेय हैं क्योंकि अर्जुन ने, कुत्ता, तोता,-इन उद्देश्यों (कर्ताओं) के कार्यों के विषय में क्रमशः मारा, भौंक रहा है, बैठा है, ये विधान किए गए हैं, अतः इन्हें विधेय कहते हैं।
उद्देश्य का विस्तार- 
कई बार वाक्य में उसका परिचय देने वाले अन्य शब्द भी साथ आए होते हैं। ये अन्य शब्द उद्देश्य का विस्तार कहलाते हैं। जैसे-
1. सुंदर पक्षी डाल पर बैठा है।
2. काला साँप पेड़ के नीचे बैठा है।
इनमें सुंदर और काला शब्द उद्देश्य का विस्तार हैं।
उद्देश्य में निम्नलिखित शब्द-भेदों का प्रयोग होता है-
(1) संज्ञा- घोड़ा भागता है।
(2) सर्वनाम- वह जाता है।
(3) विशेषण- विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है।
(4) क्रिया-विशेषण- (जिसका) भीतर-बाहर एक-सा हो।
(5) वाक्यांश- झूठ बोलना पाप है।
वाक्य के साधारण उद्देश्य में विशेषणादि जोड़कर उसका विस्तार करते हैं। उद्देश्य का विस्तार नीचे लिखे शब्दों के द्वारा प्रकट होता है-
(1) विशेषण से- अच्छा बालक आज्ञा का पालन करता है।
(2) संबंध कारक से- दर्शकों की भीड़ ने उसे घेर लिया।
(3) वाक्यांश से- काम सीखा हुआ कारीगर कठिनाई से मिलता है।
विधेय का विस्तार- मूल विधेय को पूर्ण करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है वे विधेय का विस्तार कहलाते हैं। जैसे-
वह अपने पैन से लिखता है। इसमें अपने विधेय का विस्तार है।
कर्म का विस्तार- इसी तरह कर्म का विस्तार हो सकता है। जैसे-मित्र, अच्छी पुस्तकें पढ़ो। इसमें अच्छी कर्म का विस्तार है।
क्रिया का विस्तार- इसी तरह क्रिया का भी विस्तार हो सकता है। जैसे-श्रेय मन लगाकर पढ़ता है। मन लगाकर क्रिया का विस्तार है।

वाक्य-भेद

रचना के अनुसार वाक्य के निम्नलिखित भेद हैं-
1. साधारण वाक्य।
2. संयुक्त वाक्य।
3. मिश्रित वाक्य।

1. साधारण वाक्य

जिस वाक्य में केवल एक ही उद्देश्य (कर्ता) और एक ही समापिका क्रिया हो, वह साधारण वाक्य कहलाता है। जैसे- 1. बच्चा दूध पीता है। 
2. कमल गेंद से खेलता है। 
3. मृदुला पुस्तक पढ़ रही हैं।
विशेष-इसमें कर्ता के साथ उसके विस्तारक विशेषण और क्रिया के साथ विस्तारक सहित कर्म एवं क्रिया-विशेषण आ सकते हैं। जैसे-अच्छा बच्चा मीठा दूध अच्छी तरह पीता है। यह भी साधारण वाक्य है।

2. संयुक्त वाक्य

दो अथवा दो से अधिक साधारण वाक्य जब सामानाधिकरण समुच्चयबोधकों जैसे- (पर, किन्तु, और, या आदि) से जुड़े होते हैं, तो वे संयुक्त वाक्य कहलाते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं।
(1) संयोजक- 
जब एक साधारण वाक्य दूसरे साधारण या मिश्रित वाक्य से संयोजक अव्यय द्वारा जुड़ा होता है। जैसे-गीता गई और सीता आई।
(2) विभाजक- 
जब साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का परस्पर भेद या विरोध का संबंध रहता है। जैसे-वह मेहनत तो बहुत करता है पर फल नहीं मिलता।
(3) विकल्पसूचक- 
जब दो बातों में से किसी एक को स्वीकार करना होता है। जैसे- या तो उसे मैं अखाड़े में पछाड़ूँगा या अखाड़े में उतरना ही छोड़ दूँगा।
(4) परिणामबोधक- 
जब एक साधारण वाक्य दसूरे साधारण या मिश्रित वाक्य का परिणाम होता है। जैसे- आज मुझे बहुत काम है इसलिए मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकूँगा।

3. मिश्रित वाक्य

जब किसी विषय पर पूर्ण विचार प्रकट करने के लिए कई साधारण वाक्यों को मिलाकर एक वाक्य की रचना करनी पड़ती है तब ऐसे रचित वाक्य ही मिश्रित वाक्य कहलाते हैं।
विशेष- (1) इन वाक्यों में एक मुख्य या प्रधान उपवाक्य और एक अथवा अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं जो समुच्चयबोधक अव्यय से जुड़े होते हैं।
(2) मुख्य उपवाक्य की पुष्टि, समर्थन, स्पष्टता अथवा विस्तार हेतु ही आश्रित वाक्य आते है।
आश्रित वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-
(1) संज्ञा उपवाक्य।
(2) विशेषण उपवाक्य।
(3) क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
1. संज्ञा उपवाक्य- 
जब आश्रित उपवाक्य किसी संज्ञा अथवा सर्वनाम के स्थान पर आता है तब वह संज्ञा उपवाक्य कहलाता है। जैसे- वह चाहता है कि मैं यहाँ कभी न आऊँ। यहाँ कि मैं कभी न आऊँ, यह संज्ञा उपवाक्य है।
2. विशेषण उपवाक्य- 
जो आश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की संज्ञा शब्द अथवा सर्वनाम शब्द की विशेषता बतलाता है वह विशेषण उपवाक्य कहलाता है। जैसे- जो घड़ी मेज पर रखी है वह मुझे पुरस्कारस्वरूप मिली है। यहाँ जो घड़ी मेज पर रखी है यह विशेषण उपवाक्य है।
3. क्रिया-विशेषण उपवाक्य- 
जब आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बतलाता है तब वह क्रिया-विशेषण उपवाक्य कहलाता है। जैसे- जब वह मेरे पास आया तब मैं सो रहा था। यहाँ पर जब वह मेरे पास आया यह क्रिया-विशेषण उपवाक्य है।

वाक्य-परिवर्तन

वाक्य के अर्थ में किसी तरह का परिवर्तन किए बिना उसे एक प्रकार के वाक्य से दूसरे प्रकार के वाक्य में परिवर्तन करना वाक्य-परिवर्तन कहलाता है।
(1) साधारण वाक्यों का संयुक्त वाक्यों में परिवर्तन-
साधारण वाक्य संयुक्त वाक्य
1. मैं दूध पीकर सो गया। मैंने दूध पिया और सो गया।
2. वह पढ़ने के अलावा अखबार भी बेचता है। वह पढ़ता भी है और अखबार भी बेचता है
3. मैंने घर पहुँचकर सब बच्चों को खेलते हुए देखा। मैंने घर पहुँचकर देखा कि सब बच्चे खेल रहे थे।
4. स्वास्थ्य ठीक न होने से मैं काशी नहीं जा सका। मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था इसलिए मैं काशी नहीं जा सका।
5. सवेरे तेज वर्षा होने के कारण मैं दफ्तर देर से पहुँचा। सवेरे तेज वर्षा हो रही थी इसलिए मैं दफ्तर देर से पहुँचा।
(2) संयुक्त वाक्यों का साधारण वाक्यों में परिवर्तन-
संयुक्त वाक्य साधारण वाक्य
1. पिताजी अस्वस्थ हैं इसलिए मुझे जाना ही पड़ेगा। पिताजी के अस्वस्थ होने के कारण मुझे जाना ही पड़ेगा।
2. उसने कहा और मैं मान गया। उसके कहने से मैं मान गया।
3. वह केवल उपन्यासकार ही नहीं अपितु अच्छा वक्ता भी है। वह उपन्यासकार के अतिरिक्त अच्छा वक्ता भी है।
4. लू चल रही थी इसलिए मैं घर से बाहर नहीं निकल सका। लू चलने के कारण मैं घर से बाहर नहीं निकल सका।
5. गार्ड ने सीटी दी और ट्रेन चल पड़ी। गार्ड के सीटी देने पर ट्रेन चल पड़ी।
(3) साधारण वाक्यों का मिश्रित वाक्यों में परिवर्तन- साधारण वाक्य मिश्रित वाक्य
1. हरसिंगार को देखते ही मुझे गीता की याद आ जाती है। जब मैं हरसिंगार की ओर देखता हूँ तब मुझे गीता की याद आ जाती है।
2. राष्ट्र के लिए मर मिटने वाला व्यक्ति सच्चा राष्ट्रभक्त है। वह व्यक्ति सच्चा राष्ट्रभक्त है जो राष्ट्र के लिए मर मिटे।
3. पैसे के बिना इंसान कुछ नहीं कर सकता। यदि इंसान के पास पैसा नहीं है तो वह कुछ नहीं कर सकता।
4. आधी रात होते-होते मैंने काम करना बंद कर दिया। ज्योंही आधी रात हुई त्योंही मैंने काम करना बंद कर दिया।
(4) मिश्रित वाक्यों का साधारण वाक्यों में परिवर्तन-
मिश्रित वाक्य साधारण वाक्य
1. जो संतोषी होते हैं वे सदैव सुखी रहते हैं संतोषी सदैव सुखी रहते हैं।
2. यदि तुम नहीं पढ़ोगे तो परीक्षा में सफल नहीं होगे। न पढ़ने की दशा में तुम परीक्षा में सफल नहीं होगे।
3. तुम नहीं जानते कि वह कौन है ? तुम उसे नहीं जानते।
4. जब जेबकतरे ने मुझे देखा तो वह भाग गया। मुझे देखकर जेबकतरा भाग गया।
5. जो विद्वान है, उसका सर्वत्र आदर होता है। विद्वानों का सर्वत्र आदर होता है।

वाक्य-विश्लेषण

वाक्य में आए हुए शब्द अथवा वाक्य-खंडों को अलग-अलग करके उनका पारस्परिक संबंध बताना वाक्य-विश्लेषण कहलाता है।
साधारण वाक्यों का विश्लेषण
1. हमारा राष्ट्र समृद्धशाली है।
2. हमें नियमित रूप से विद्यालय आना चाहिए।
3. अशोक, सोहन का बड़ा पुत्र, पुस्तकालय में अच्छी पुस्तकें छाँट रहा है।
उद्देश्य विधेय
वाक्य उद्देश्य उद्देश्य का क्रिया कर्म कर्म का पूरक विधेय क्रमांक कर्ता विस्तार विस्तार का विस्तार
1. राष्ट्र हमारा है - - समृद्ध -
2. हमें - आना विद्यालय - शाली नियमित
चाहिए रूप से
3. अशोक सोहन का छाँट रहा पुस्तकें अच्छी पुस्तकालय
बड़ा पुत्र है में
मिश्रित वाक्य का विश्लेषण-
1. जो व्यक्ति जैसा होता है वह दूसरों को भी वैसा ही समझता है।
2. जब-जब धर्म की क्षति होती है तब-तब ईश्वर का अवतार होता है।
3. मालूम होता है कि आज वर्षा होगी।
4. जो संतोषी होत हैं वे सदैव सुखी रहते हैं।
5. दार्शनिक कहते हैं कि जीवन पानी का बुलबुला है।
संयुक्त वाक्य का विश्लेषण-
1. तेज वर्षा हो रही थी इसलिए परसों मैं तुम्हारे घर नहीं आ सका।
2. मैं तुम्हारी राह देखता रहा पर तुम नहीं आए।
3. अपनी प्रगति करो और दूसरों का हित भी करो तथा स्वार्थ में न हिचको।

अर्थ के अनुसार वाक्य के प्रकार

अर्थानुसार वाक्य के निम्नलिखित आठ भेद हैं-
1. विधानार्थक वाक्य।
2. निषेधार्थक वाक्य।
3. आज्ञार्थक वाक्य।
4. प्रश्नार्थक वाक्य।
5. इच्छार्थक वाक्य।
6. संदेर्थक वाक्य।
7. संकेतार्थक वाक्य।
8. विस्मयबोधक वाक्य।
1. विधानार्थक वाक्य-
जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने का सामान्य कथन हो। जैसे-मैं कल दिल्ली जाऊँगा। पृथ्वी गोल है।
2. निषेधार्थक वाक्य- 
जिस वाक्य से किसी बात के न होने का बोध हो। जैसे-मैं किसी से लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता।
3. आज्ञार्थक वाक्य- 
जिस वाक्य से आज्ञा उपदेश अथवा आदेश देने का बोध हो। जैसे-शीघ्र जाओ वरना गाड़ी छूट जाएगी। आप जा सकते हैं।
4. प्रश्नार्थक वाक्य- 
जिस वाक्य में प्रश्न किया जाए। जैसे-वह कौन हैं उसका नाम क्या है।
5. इच्छार्थक वाक्य- 
जिस वाक्य से इच्छा या आशा के भाव का बोध हो। जैसे-दीर्घायु हो। धनवान हो।
6. संदेहार्थक वाक्य- 
जिस वाक्य से संदेह का बोध हो। जैसे-शायद आज वर्षा हो। अब तक पिताजी जा चुके होंगे।
7. संकेतार्थक वाक्य- 
जिस वाक्य से संकेत का बोध हो। जैसे-यदि तुम कन्याकुमारी चलो तो मैं भी चलूँ।
8. विस्मयबोधक वाक्य-
जिस वाक्य से विस्मय के भाव प्रकट हों। जैसे-अहा ! कैसा सुहावना मौसम है।

virAm chihn - विराम चिह्न

23. विराम-चिह्न (virAm chihn)

विराम-चिह्न :-  
‘विराम’ शब्द का अर्थ है ‘रुकना’। जब हम अपने भावों को भाषा के द्वारा व्यक्त करते हैं तब एक भाव की अभिव्यक्ति के बाद कुछ देर रुकते हैं, यह रुकना ही विराम कहलाता है।
इस विराम को प्रकट करने हेतु जिन कुछ चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, विराम-चिह्न कहलाते हैं। वे इस प्रकार हैं-
1. अल्प विराम (,) :- पढ़ते अथवा बोलते समय बहुत थोड़ा रुकने के लिए अल्प विराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-सीता, गीता और लक्ष्मी। यह सुंदर स्थल, जो आप देख रहे हैं, बापू की समाधि है। हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।
2. अर्ध विराम (;) :- जहाँ अल्प विराम की अपेक्षा कुछ ज्यादा देर तक रुकना हो वहाँ इस अर्ध-विराम चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-सूर्योदय हो गया; अंधकार न जाने कहाँ लुप्त हो गया।
3. पूर्ण विराम (।) :- जहाँ वाक्य पूर्ण होता है वहाँ पूर्ण विराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-मोहन पुस्तक पढ़ रहा है। वह फूल तोड़ता है।
4. विस्मयादिबोधक चिह्न (!) :- विस्मय, हर्ष, शोक, घृणा आदि भावों को दर्शाने वाले शब्द के बाद अथवा कभी-कभी ऐसे वाक्यांश या वाक्य के अंत में भी विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे- हाय ! वह बेचारा मारा गया। वह तो अत्यंत सुशील था ! बड़ा अफ़सोस है !
5. प्रश्नवाचक चिह्न (?) :- प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-किधर चले ? तुम कहाँ रहते हो ?
6. कोष्ठक () :- इसका प्रयोग पद (शब्द) का अर्थ प्रकट करने हेतु, क्रम-बोध और नाटक या एकांकी में अभिनय के भावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। जैसे-निरंतर (लगातार) व्यायाम करते रहने से देह (शरीर) स्वस्थ रहता है। विश्व के महान राष्ट्रों में (1) अमेरिका, (2) रूस, (3) चीन, (4) ब्रिटेन आदि हैं।
नल-(खिन्न होकर) ओर मेरे दुर्भाग्य ! तूने दमयंती को मेरे साथ बाँधकर उसे भी जीवन-भर कष्ट दिया।
7. निर्देशक चिह्न (-) :- इसका प्रयोग विषय-विभाग संबंधी प्रत्येक शीर्षक के आगे, वाक्यों, वाक्यांशों अथवा पदों के मध्य विचार अथवा भाव को विशिष्ट रूप से व्यक्त करने हेतु, उदाहरण अथवा जैसे के बाद, उद्धरण के अंत में, लेखक के नाम के पूर्व और कथोपकथन में नाम के आगे किया जाता है। जैसे-समस्त जीव-जंतु-घोड़ा, ऊँट, बैल, कोयल, चिड़िया सभी व्याकुल थे। तुम सो रहे हो- अच्छा, सोओ।
द्वारपाल-भगवन ! एक दुबला-पतला ब्राह्मण द्वार पर खड़ा है।
8. उद्धरण चिह्न (‘‘ ’’) :- जब किसी अन्य की उक्ति को बिना किसी परिवर्तन के ज्यों-का-त्यों रखा जाता है, तब वहाँ इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इसके पूर्व अल्प विराम-चिह्न लगता है। जैसे-नेताजी ने कहा था, ‘‘तुम हमें खून दो, हम तुम्हें आजादी देंगे।’’, ‘‘ ‘रामचरित मानस’ तुलसी का अमर काव्य ग्रंथ है।’’
9. आदेश चिह्न (:- ) :- किसी विषय को क्रम से लिखना हो तो विषय-क्रम व्यक्त करने से पूर्व इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे-सर्वनाम के प्रमुख पाँच भेद हैं :-
(1) पुरुषवाचक, (2) निश्चयवाचक, (3) अनिश्चयवाचक, (4) संबंधवाचक, (5) प्रश्नवाचक।
10. योजक चिह्न (-) :- समस्त किए हुए शब्दों में जिस चिह्न का प्रयोग किया जाता है, वह योजक चिह्न कहलाता है। जैसे-माता-पिता, दाल-भात, सुख-दुख, पाप-पुण्य।
11. लाघव चिह्न (.) :- किसी बड़े शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए उस शब्द का प्रथम अक्षर लिखकर उसके आगे शून्य लगा देते हैं। जैसे-पंडित=पं., डॉक्टर=डॉ., प्रोफेसर=प्रो.।

Sabd j~nAn - शब्द-ज्ञान

22. शब्द-ज्ञान (Sabd-j~nAn)

1. पर्यायवाची शब्द

किसी शब्द-विशेष के लिए प्रयुक्त समानार्थक शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं। यद्यपि पर्यायवाची शब्द समानार्थी होते हैं किन्तु भाव में एक-दूसरे से किंचित भिन्न होते हैं।
1.अमृत- सुधा, सोम, पीयूष, अमिय।
2.असुर- राक्षस, दैत्य, दानव, निशाचर।
3.अग्नि- आग, अनल, पावक, वह्नि।
4.अश्व- घोड़ा, हय, तुरंग, बाजी।
5.आकाश- गगन, नभ, आसमान, व्योम, अंबर।
6.आँख- नेत्र, दृग, नयन, लोचन।
7.इच्छा- आकांक्षा, चाह, अभिलाषा, कामना।
8.इंद्र- सुरेश, देवेंद्र, देवराज, पुरंदर।
9.ईश्वर- प्रभु, परमेश्वर, भगवान, परमात्मा।
10.कमल- जलज, पंकज, सरोज, राजीव, अरविन्द।
11.गरमी- ग्रीष्म, ताप, निदाघ, ऊष्मा।
12.गृह- घर, निकेतन, भवन, आलय।
13.गंगा- सुरसरि, त्रिपथगा, देवनदी, जाह्नवी, भागीरथी।
14.चंद्र- चाँद, चंद्रमा, विधु, शशि, राकेश।
15.जल- वारि, पानी, नीर, सलिल, तोय।
16.नदी- सरिता, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी।
17.पवन- वायु, समीर, हवा, अनिल।
18.पत्नी- भार्या, दारा, अर्धागिनी, वामा।
19.पुत्र- बेटा, सुत, तनय, आत्मज।
20.पुत्री-बेटी, सुता, तनया, आत्मजा।
21.पृथ्वी- धरा, मही, धरती, वसुधा, भूमि, वसुंधरा।
22.पर्वत- शैल, नग, भूधर, पहाड़।
23.बिजली- चपला, चंचला, दामिनी, सौदामनी।
24.मेघ- बादल, जलधर, पयोद, पयोधर, घन।
25.राजा- नृप, नृपति, भूपति, नरपति।
26.रजनी- रात्रि, निशा, यामिनी, विभावरी।
27.सर्प- सांप, अहि, भुजंग, विषधर।
28.सागर- समुद्र, उदधि, जलधि, वारिधि।
29.सिंह- शेर, वनराज, शार्दूल, मृगराज।
30.सूर्य- रवि, दिनकर, सूरज, भास्कर।
31.स्त्री- ललना, नारी, कामिनी, रमणी, महिला।
32.शिक्षक- गुरु, अध्यापक, आचार्य, उपाध्याय।
33.हाथी- कुंजर, गज, द्विप, करी, हस्ती।

2. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

1 जिसे देखकर डर (भय) लगे डरावना, भयानक
2 जो स्थिर रहे स्थावर
3 ज्ञान देने वाली ज्ञानदा
4 भूत-वर्तमान-भविष्य को देखने (जानने) वाले त्रिकालदर्शी
5 जानने की इच्छा रखने वाला जिज्ञासु
6 जिसे क्षमा न किया जा सके अक्षम्य
7 पंद्रह दिन में एक बार होने वाला पाक्षिक
8 अच्छे चरित्र वाला सच्चरित्र
9 आज्ञा का पालन करने वाला आज्ञाकारी
10 रोगी की चिकित्सा करने वाला चिकित्सक
11 सत्य बोलने वाला सत्यवादी
12 दूसरों पर उपकार करने वाला उपकारी
13 जिसे कभी बुढ़ापा न आये अजर
14 दया करने वाला दयालु
15 जिसका आकार न हो निराकार
16 जो आँखों के सामने हो प्रत्यक्ष
17 जहाँ पहुँचा न जा सके अगम, अगम्य
18 जिसे बहुत कम ज्ञान हो, थोड़ा जानने वाला अल्पज्ञ
19 मास में एक बार आने वाला मासिक
20 जिसके कोई संतान न हो निस्संतान
21 जो कभी न मरे अमर
22 जिसका आचरण अच्छा न हो दुराचारी
23 जिसका कोई मूल्य न हो अमूल्य
24 जो वन में घूमता हो वनचर
25 जो इस लोक से बाहर की बात हो अलौकिक
26 जो इस लोक की बात हो लौकिक
27 जिसके नीचे रेखा हो रेखांकित
28 जिसका संबंध पश्चिम से हो पाश्चात्य
29 जो स्थिर रहे स्थावर
30 दुखांत नाटक त्रासदी
31 जो क्षमा करने के योग्य हो क्षम्य
32 हिंसा करने वाला हिंसक
33 हित चाहने वाला हितैषी
34 हाथ से लिखा हुआ हस्तलिखित
35 सब कुछ जानने वाला सर्वज्ञ
36 जो स्वयं पैदा हुआ हो स्वयंभू
37 जो शरण में आया हो शरणागत
38 जिसका वर्णन न किया जा सके वर्णनातीत
39 फल-फूल खाने वाला शाकाहारी
40 जिसकी पत्नी मर गई हो विधुर
41 जिसका पति मर गया हो विधवा
42 सौतेली माँ विमाता
43 व्याकरण जाननेवाला वैयाकरण
44 रचना करने वाला रचयिता
45 खून से रँगा हुआ रक्तरंजित
46 अत्यंत सुन्दर स्त्री रूपसी
47 कीर्तिमान पुरुष यशस्वी
48 कम खर्च करने वाला मितव्ययी
49 मछली की तरह आँखों वाली मीनाक्षी
50 मयूर की तरह आँखों वाली मयूराक्षी
51 बच्चों के लिए काम की वस्तु बालोपयोगी
52 जिसकी बहुत अधिक चर्चा हो बहुचर्चित
53 जिस स्त्री के कभी संतान न हुई हो वंध्या (बाँझ)
54 फेन से भरा हुआ फेनिल
55 प्रिय बोलने वाली स्त्री प्रियंवदा
56 जिसकी उपमा न हो निरुपम
57 जो थोड़ी देर पहले पैदा हुआ हो नवजात
58 जिसका कोई आधार न हो निराधार
59 नगर में वास करने वाला नागरिक
60 रात में घूमने वाला निशाचर
61 ईश्वर पर विश्वास न रखने वाला नास्तिक
62 मांस न खाने वाला निरामिष
63 बिलकुल बरबाद हो गया हो ध्वस्त
64 जिसकी धर्म में निष्ठा हो धर्मनिष्ठ
65 देखने योग्य दर्शनीय
66 बहुत तेज चलने वाला द्रुतगामी
67 जो किसी पक्ष में न हो तटस्थ
68 तत्त्त्तव को जानने वाला तत्त्त्तवज्ञ
69 तप करने वाला तपस्वी
70 जो जन्म से अंधा हो जन्मांध
71 जिसने इंद्रियों को जीत लिया हो जितेंद्रिय
72 चिंता में डूबा हुआ चिंतित
73 जो बहुत समय कर ठहरे चिरस्थायी
74 जिसकी चार भुजाएँ हों चतुर्भुज
75 हाथ में चक्र धारण करनेवाला चक्रपाणि
76 जिससे घृणा की जाए घृणित
77 जिसे गुप्त रखा जाए गोपनीय
78 गणित का ज्ञाता गणितज्ञ
79 आकाश को चूमने वाला गगनचुंबी
80 जो टुकड़े-टुकड़े हो गया हो खंडित
818 आकाश में उड़ने वाला नभचर
82 तेज बुद्धिवाला कुशाग्रबुद्धि
83 कल्पना से परे हो कल्पनातीत
84 जो उपकार मानता है कृतज्ञ
85 किसी की हँसी उड़ाना उपहास
86 ऊपर कहा हुआ उपर्युक्त
87 ऊपर लिखा गया उपरिलिखित
88 जिस पर उपकार किया गया हो उपकृत
89 इतिहास का ज्ञाता अतिहासज्ञ
90 आलोचना करने वाला आलोचक
91 ईश्वर में आस्था रखने वाला आस्तिक
92 बिना वेतन का अवैतनिक
93 जो कहा न जा सके अकथनीय
94 जो गिना न जा सके अगणित
95 जिसका कोई शत्रु ही न जन्मा हो अजातशत्रु
96 जिसके समान कोई दूसरा न हो अद्वितीय
97 जो परिचित न हो अपरिचित
98 जिसकी कोई उपमा न हो अनुपम

3. विपरीतार्थक (विलोम शब्द)

शब्द विलोम शब्द विलोम शब्द विलोम
अथ इति आविर्भाव तिरोभाव आकर्षण विकर्षण
आमिष निरामिष अभिज्ञ अनभिज्ञ आजादी गुलामी
अनुकूल प्रतिकूल आर्द्र शुष्क अनुराग विराग
आहार निराहार अल्प अधिक अनिवार्य वैकल्पिक
अमृत विष अगम सुगम अभिमान नम्रता
आकाश पाताल आशा निराशा अर्थ अनर्थ
अल्पायु दीर्घायु अनुग्रह विग्रह अपमान सम्मान
आश्रित निराश्रित अंधकार प्रकाश अनुज अग्रज
अरुचि रुचि आदि अंत आदान प्रदान
आरंभ अंत आय व्यय अर्वाचीन प्राचीन
अवनति उन्नति कटु मधुर अवनी अंबर
क्रिया प्रतिक्रिया कृतज्ञ कृतघ्न आदर अनादर
कड़वा मीठा आलोक अंधकार क्रुद्ध शान्त
उदय अस्त क्रय विक्रय आयात निर्यात
कर्म निष्कर्म अनुपस्थित उपस्थित खिलना मुरझाना
आलस्य स्फूर्ति खुशी दुख, गम आर्य अनार्य
गहरा उथला अतिवृष्टि अनावृष्टि गुरु लघु
आदि अनादि जीवन मरण इच्छा अनिच्छा
गुण दोष इष्ट अनिष्ट गरीब अमीर
इच्छित अनिच्छित घर बाहर इहलोक परलोक
चर अचर उपकार अपकार छूत अछूत
उदार अनुदार जल थल उत्तीर्ण अनुत्तीर्ण
जड़ चेतन उधार नकद जीवन मरण
उत्थान पतन जंगम स्थावर उत्कर्ष अपकर्ष
उत्तर दक्षिण जटिल सरस गुप्त प्रकट
एक अनेक तुच्छ महान ऐसा वैसा
दिन रात देव दानव दुराचारी सदाचारी
मानवता दानवता धर्म अधर्म महात्मा दुरात्मा
धीर अधीर मान अपमान धूप छाँव
मित्र शत्रु नूतन पुरातन मधुर कटु
नकली असली मिथ्या सत्य निर्माण विनाश
मौखिक लिखित आस्तिक नास्तिक मोक्ष बंधन
निकट दूर रक्षक भक्षक निंदा स्तुति
पतिव्रता कुलटा राजा रंक पाप पुण्य
राग द्वेष प्रलय सृष्टि रात्रि दिवस
पवित्र अपवित्र लाभ हानि विधवा सधवा
प्रेम घृणा विजय पराजय प्रश्न उत्तर
पूर्ण अपूर्ण वसंत पतझर परतंत्र स्वतंत्र
विरोध समर्थन बाढ़ सूखा शूर कायर
बंधन मुक्ति शयन जागरण बुराई भलाई
शीत उष्ण भाव अभाव स्वर्ग नरक
मंगल अमंगल सौभाग्य दुर्भाग्य स्वीकृत अस्वीकृत
शुक्ल कृष्ण हित अहित साक्षर निरक्षर
स्वदेश विदेश हर्ष शोक हिंसा अहिंसा
स्वाधीन पराधीन क्षणिक शाश्वत साधु असाधु
ज्ञान अज्ञान सुजन दुर्जन शुभ अशुभ
सुपुत्र कुपुत्र सुमति कुमति सरस नीरस
सच झूठ साकार निराकार श्रम विश्राम
स्तुति निंदा विशुद्ध दूषित सजीव निर्जीव
विषम सम सुर असुर विद्वान मूर्ख

4. एकार्थक प्रतीत होने वाले शब्द

1. अस्त्र- जो हथियार हाथ से फेंककर चलाया जाए। जैसे-बाण।
शस्त्र- जो हथियार हाथ में पकड़े-पकड़े चलाया जाए। जैसे-कृपाण।
2. अलौकिक- जो इस जगत में कठिनाई से प्राप्त हो। लोकोत्तर।
अस्वाभाविक- जो मानव स्वभाव के विपरीत हो।
असाधारण- सांसारिक होकर भी अधिकता से न मिले। विशेष।
3. अमूल्य- जो चीज मूल्य देकर भी प्राप्त न हो सके।
बहुमूल्य- जिस चीज का बहुत मूल्य देना पड़ा।
4. आनंद- खुशी का स्थायी और गंभीर भाव।
आह्लाद- क्षणिक एवं तीव्र आनंद।
उल्लास- सुख-प्राप्ति की अल्पकालिक क्रिया, उमंग।
प्रसन्नता-साधारण आनंद का भाव।
5. ईर्ष्या- दूसरे की उन्नति को सहन न कर सकना।
डाह-ईर्ष्यायुक्त जलन।
द्वेष- शत्रुता का भाव।
स्पर्धा- दूसरों की उन्नति देखकर स्वयं उन्नति करने का प्रयास करना।
6. अपराध- सामाजिक एवं सरकारी कानून का उल्लंघन।
पाप- नैतिक एवं धार्मिक नियमों को तोड़ना।
7. अनुनय-किसी बात पर सहमत होने की प्रार्थना।
विनय- अनुशासन एवं शिष्टतापूर्ण निवेदन।
आवेदन-योग्यतानुसार किसी पद के लिए कथन द्वारा प्रस्तुत होना।
प्रार्थना- किसी कार्य-सिद्धि के लिए विनम्रतापूर्ण कथन।
8. आज्ञा-बड़ों का छोटों को कुछ करने के लिए आदेश।
अनुमति-प्रार्थना करने पर बड़ों द्वारा दी गई सहमति।
9. इच्छा- किसी वस्तु को चाहना।
उत्कंठा- प्रतीक्षायुक्त प्राप्ति की तीव्र इच्छा।
आशा-प्राप्ति की संभावना के साथ इच्छा का समन्वय।
स्पृहा-उत्कृष्ट इच्छा।
10. सुंदर- आकर्षक वस्तु।
चारु- पवित्र और सुंदर वस्तु।
रुचिर-सुरुचि जाग्रत करने वाली सुंदर वस्तु।
मनोहर- मन को लुभाने वाली वस्तु।
11. मित्र- समवयस्क, जो अपने प्रति प्यार रखता हो।
सखा-साथ रहने वाला समवयस्क।
सगा-आत्मीयता रखने वाला।
सुहृदय-सुंदर हृदय वाला, जिसका व्यवहार अच्छा हो।
12. अंतःकरण- मन, चित्त, बुद्धि, और अहंकार की समष्टि।
चित्त- स्मृति, विस्मृति, स्वप्न आदि गुणधारी चित्त।
मन- सुख-दुख की अनुभूति करने वाला।
13. महिला- कुलीन घराने की स्त्री।
पत्नी- अपनी विवाहित स्त्री।
स्त्री- नारी जाति की बोधक।
14. नमस्ते- समान अवस्था वालो को अभिवादन।
नमस्कार- समान अवस्था वालों को अभिवादन।
प्रणाम- अपने से बड़ों को अभिवादन।
अभिवादन- सम्माननीय व्यक्ति को हाथ जोड़ना।
15. अनुज- छोटा भाई।
अग्रज- बड़ा भाई।
भाई- छोटे-बड़े दोनों के लिए।
16. स्वागत- किसी के आगमन पर सम्मान।
अभिनंदन- अपने से बड़ों का विधिवत सम्मान।
17. अहंकार- अपने गुणों पर घमंड करना।
अभिमान- अपने को बड़ा और दूसरे को छोटा समझना।
दंभ- अयोग्य होते हुए भी अभिमान करना।
18. मंत्रणा- गोपनीय रूप से परामर्श करना।
परामर्श- पूर्णतया किसी विषय पर विचार-विमर्श कर मत प्रकट करना।

5.समोच्चरित शब्द

1. अनल=आग
अनिल=हवा, वायु
2. उपकार=भलाई, भला करना
अपकार=बुराई, बुरा करना
3. अन्न=अनाज
अन्य=दूसरा
4. अणु=कण
अनु=पश्चात
5. ओर=तरफ
और=तथा
6. असित=काला
अशित=खाया हुआ
7. अपेक्षा=तुलना में
उपेक्षा=निरादर, लापरवाही
8. कल=सुंदर, पुरजा
काल=समय
9. अंदर=भीतर
अंतर=भेद
10. अंक=गोद
अंग=देह का भाग
11. कुल=वंश
कूल=किनारा
12. अश्व=घोड़ा
अश्म=पत्थर
13. अलि=भ्रमर
आली=सखी
14. कृमि=कीट
कृषि=खेती
15. अपचार=अपराध उपचार=इलाज
16. अन्याय=गैर-इंसाफी
अन्यान्य=दूसरे-दूसरे
17. कृति=रचना
कृती=निपुण, परिश्रमी
18. आमरण=मृत्युपर्यंत
आभरण=गहना
19. अवसान=अंत
आसान=सरल
20. कलि=कलियुग, झगड़ा
कली=अधखिला फूल
21. इतर=दूसरा
इत्र=सुगंधित द्रव्य
22. क्रम=सिलसिला कर्म=काम
23. परुष=कठोर
पुरुष=आदमी
24. कुट=घर,किला
कूट=पर्वत
25. कुच=स्तन
कूच=प्रस्थान
26. प्रसाद=कृपा
प्रासादा=महल
27. कुजन=दुर्जन
कूजन=पक्षियों का कलरव
28. गत=बीता हुआ गति=चाल
29. पानी=जल
पाणि=हाथ
30. गुर=उपाय
गुरु=शिक्षक, भारी
31. ग्रह=सूर्य,चंद्र
गृह=घर
32. प्रकार=तरह
प्राकार=किला, घेरा
33. चरण=पैर
चारण=भाट
34. चिर=पुराना
चीर=वस्त्र
35. फन=साँप का फन
फ़न=कला
36. छत्र=छाया
क्षत्र=क्षत्रिय,शक्ति
37. ढीठ=दुष्ट,जिद्दी
डीठ=दृष्टि
38. बदन=देह
वदन=मुख
39. तरणि=सूर्य
तरणी=नौका
40. तरंग=लहर
तुरंग=घोड़ा
41. भवन=घर
भुवन=संसार
42. तप्त=गरम
तृप्त=संतुष्ट
43. दिन=दिवस
दीन=दरिद्र
44. भीति=भय
भित्ति=दीवार
45. दशा=हालत
दिशा=तरफ़
46. द्रव=तरल पदार
अथ द्रव्य=धन
47. भाषण=व्याख्यान
भीषण=भयंकर
48. धरा=पृथ्वी
धारा=प्रवाह
49. नय=नीति
नव=नया
50. निर्वाण=मोक्ष
निर्माण=बनाना
51. निर्जर=देवता निर्झर=झरना
52. मत=राय
मति=बुद्धि
53. नेक=अच्छा
नेकु=तनिक
54. पथ=राह
पथ्य=रोगी का आहार
55. मद=मस्ती
मद्य=मदिरा
56. परिणाम=फल
परिमाण=वजन
57. मणि=रत्न
फणी=सर्प
58. मलिन=मैला
म्लान=मुरझाया हुआ
59. मातृ=माता
मात्र=केवल
60. रीति=तरीका
रीता=खाली
61. राज=शासन
राज=रहस्य
62. ललित=सुंदर
ललिता=गोपी
63. लक्ष्य=उद्देश्य
लक्ष=लाख
64. वक्ष=छाती
वृक्ष=पेड़
65. वसन=वस्त्र
व्यसन=नशा, आदत
66. वासना=कुत्सित
विचार बास=गंध
67. वस्तु=चीज
वास्तु=मकान
68. विजन=सुनसान
व्यजन=पंखा
69. शंकर=शिव
संकर=मिश्रित
70. हिय=हृदय
हय=घोड़ा
71. शर=बाण
सर=तालाब
72. शम=संयम
सम=बराबर
73. चक्रवाक=चकवा
चक्रवात=बवंडर
74. शूर=वीर
सूर=अंधा
75. सुधि=स्मरण
सुधी=बुद्धिमान
76. अभेद=अंतर नहीं
अभेद्य=न टूटने योग्य
77. संघ=समुदाय
संग=साथ
78. सर्ग=अध्याय
स्वर्ग=एक लोक
79. प्रणय=प्रेम
परिणय=विवाह
80. समर्थ=सक्षम
सामर्थ्य=शक्ति
81. कटिबंध=कमरबंध
कटिबद्ध=तैयार
82. क्रांति=विद्रोह
क्लांति=थकावट
83. इंदिरा=लक्ष्मी
इंद्रा=इंद्राणी

6. अनेकार्थक शब्द

1. अक्षर= नष्ट न होने वाला, वर्ण, ईश्वर, शिव।
2. अर्थ= धन, ऐश्वर्य, प्रयोजन, हेतु।
3. आराम= बाग, विश्राम, रोग का दूर होना।
4. कर= हाथ, किरण, टैक्स, हाथी की सूँड़।
5. काल= समय, मृत्यु, यमराज।
6. काम= कार्य, पेशा, धंधा, वासना, कामदेव।
7. गुण= कौशल, शील, रस्सी, स्वभाव, धनुष की डोरी।
8. घन= बादल, भारी, हथौड़ा, घना।
9. जलज= कमल, मोती, मछली, चंद्रमा, शंख।
10. तात= पिता, भाई, बड़ा, पूज्य, प्यारा, मित्र।
11. दल= समूह, सेना, पत्ता, हिस्सा, पक्ष, भाग, चिड़ी।
12. नग= पर्वत, वृक्ष, नगीना।
13. पयोधर= बादल, स्तन, पर्वत, गन्ना।
14. फल= लाभ, मेवा, नतीजा, भाले की नोक।
15. बाल= बालक, केश, बाला, दानेयुक्त डंठल।
16. मधु= शहद, मदिरा, चैत मास, एक दैत्य, वसंत।
17. राग= प्रेम, लाल रंग, संगीत की ध्वनि।
18. राशि= समूह, मेष, कर्क, वृश्चिक आदि राशियाँ।
19. लक्ष्य= निशान, उद्देश्य।
20. वर्ण= अक्षर, रंग, ब्राह्मण आदि जातियाँ।
21. सारंग= मोर, सर्प, मेघ, हिरन, पपीहा, राजहंस, हाथी, कोयल, कामदेव, सिंह, धनुष भौंरा, मधुमक्खी, कमल।
22. सर= अमृत, दूध, पानी, गंगा, मधु, पृथ्वी, तालाब।
23. क्षेत्र= देह, खेत, तीर्थ, सदाव्रत बाँटने का स्थान।
24. शिव= भाग्यशाली, महादेव, श्रृगाल, देव, मंगल।
25. हरि= हाथी, विष्णु, इंद्र, पहाड़, सिंह, घोड़ा, सर्प, वानर, मेढक, यमराज, ब्रह्मा, शिव, कोयल, किरण, हंस।

7. पशु-पक्षियों की बोलियाँ

पशु बोली पशु बोली पशु बोली
ऊँट बलबलाना कोयल कूकना गाय रँभाना
चिड़िया चहचहाना भैंस डकराना (रँभाना) बकरी मिमियाना
मोर कुहकना घोड़ा हिनहिनाना तोता टैं-टैं करना
हाथी चिघाड़ना कौआ काँव-काँव करना साँप फुफकारना
शेर दहाड़ना सारस क्रें-क्रें करना

टिटहरी टीं-टीं करना कुत्ता भौंकना मक्खी भिनभिनाना


8. कुछ जड़ पदार्थों की विशेष ध्वनियाँ या क्रियाएँ

जिह्वा लपलपाना दाँत किटकिटाना
हृदय धड़कना पैर पटकना
अश्रु छलछलाना घड़ी टिक-टिक करना
पंख फड़फड़ाना तारे जगमगाना
नौका डगमगाना मेघ गरजना

9. कुछ सामान्य अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध अशुद्ध शुद्ध अशुद्ध शुद्ध अशुद्ध शुद्ध
अगामी आगामी लिखायी लिखाई सप्ताहिक साप्ताहिक अलोकिक अलौकिक
संसारिक सांसारिक क्यूँ क्यों आधीन अधीन हस्ताक्षेप हस्तक्षेप
व्योहार व्यवहार बरात बारात उपन्यासिक औपन्यासिक क्षत्रीय क्षत्रिय
दुनियां दुनिया तिथी तिथि कालीदास कालिदास पूरती पूर्ति
अतिथी अतिथि नीती नीति गृहणी गृहिणी परिस्थित परिस्थिति
आर्शिवाद आशीर्वाद निरिक्षण निरीक्षण बिमारी बीमारी पत्नि पत्नी
शताब्दि शताब्दी लड़ायी लड़ाई स्थाई स्थायी श्रीमति श्रीमती
सामिग्री सामग्री वापिस वापस प्रदर्शिनी प्रदर्शनी ऊत्थान उत्थान
दुसरा दूसरा साधू साधु रेणू रेणु नुपुर नूपुर
अनुदित अनूदित जादु जादू बृज ब्रज प्रथक पृथक
इतिहासिक ऐतिहासिक दाइत्व दायित्व सेनिक सैनिक सैना सेना
घबड़ाना घबराना श्राप शाप बनस्पति वनस्पति बन वन
विना बिना बसंत वसंत अमावश्या अमावस्या प्रशाद प्रसाद
हंसिया हँसिया गंवार गँवार असोक अशोक निस्वार्थ निःस्वार्थ
दुस्कर दुष्कर मुल्यवान मूल्यवान सिरीमान श्रीमान महाअन महान
नवम् नवम क्षात्र छात्र छमा क्षमा आर्दश आदर्श
षष्टम् षष्ठ प्रंतु परंतु प्रीक्षा परीक्षा मरयादा मर्यादा
दुदर्शा दुर्दशा कवित्री कवयित्री प्रमात्मा परमात्मा घनिष्ट घनिष्ठ
राजभिषेक राज्याभिषेक पियास प्यास वितीत व्यतीत कृप्या कृपा
व्यक्तिक वैयक्तिक मांसिक मानसिक समवाद संवाद संपति संपत्ति
विषेश विशेष शाशन शासन दुःख दुख मूलतयः मूलतः
पिओ पियो हुये हुए लीये लिए सहास साहस
रामायन रामायण चरन चरण रनभूमि रणभूमि रसायण रसायन
प्रान प्राण मरन मरण कल्यान कल्याण पडता पड़ता
ढ़ेर ढेर झाडू झाड़ू मेंढ़क मेढक श्रेष्ट श्रेष्ठ
षष्टी षष्ठी निष्टा निष्ठा सृष्ठि सृष्टि इष्ठ इष्ट
स्वास्थ स्वास्थ्य पांडे पांडेय स्वतंत्रा स्वतंत्रता उपलक्ष उपलक्ष्य
महत्व महत्त्त्व आल्हाद आह्लाद उज्वल उज्जवल व्यस्क वयस्क

pad parichay - पद परिचय

21. पद-परिचय (pad-parichay)

पद-परिचय :- 
वाक्यगत शब्दों के रूप और उनका पारस्परिक संबंध बताने में जिस प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है वह पद-परिचय या शब्दबोध कहलाता है।
परिभाषा :-
वाक्यगत प्रत्येक पद (शब्द) का व्याकरण की दृष्टि से पूर्ण परिचय देना ही पद-परिचय कहलाता है।
शब्द आठ प्रकार के होते हैं-
1.संज्ञा :- भेद, लिंग, वचन, कारक, क्रिया अथवा अन्य शब्दों से संबंध।
2.सर्वनाम :- भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक, क्रिया अथवा अन्य शब्दों से संबंध। किस संज्ञा के स्थान पर आया है (यदि पता हो)।
3.क्रिया :- भेद, लिंग, वचन, प्रयोग, धातु, काल, वाच्य, कर्ता और कर्म से संबंध।
4.विशेषण :- भेद, लिंग, वचन और विशेष्य की विशेषता।
5.क्रिया-विशेषण :- भेद, जिस क्रिया की विशेषता बताई गई हो उसके बारे में निर्देश।
6.संबंधबोधक :- भेद, जिससे संबंध है उसका निर्देश।
7.समुच्चयबोधक :- भेद, अन्वित शब्द, वाक्यांश या वाक्य।
8.विस्मयादिबोधक :- भेद अर्थात कौन-सा भाव स्पष्ट कर रहा है।

samAs - समास

20. समास (samAs)

समास का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसे-
‘रसोई के लिए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं।
सामासिक शब्द :- 
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपुत्र।
समास-विग्रह :- 
सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। जैसे-
राजपुत्र-राजा का पुत्र।
पूर्वपद और उत्तरपद :- 
समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। जैसे-
गंगाजल। इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है।

समास के भेद

समास के चार भेद हैं-
1. अव्ययीभाव समास।
2. तत्पुरुष समास।
3. द्वंद्व समास।
4. बहुव्रीहि समास।

1. अव्ययीभाव समास

जिस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे-
यथामति (मति के अनुसार), 
आमरण (मृत्यु कर) | इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
कुछ अन्य उदाहरण-
आजीवन - जीवन-भर, 
यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार, 
यथाविधि  - विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार, 
भरपेट पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़, 
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोंरात - रात ही रात में, 
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक - शक के बिना, 
निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना, 
हरसाल - हरेक साल
अव्ययीभाव समास की पहचान- इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास होने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे-ऊपर के समस्त शब्द है।

2. तत्पुरुष समास

जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-तुलसीदासकृत=तुलसी द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है। विभक्तियों के नाम के अनुसार इसके छह भेद हैं-
(1) कर्म तत्पुरुष गिरहकट गिरह को काटने वाला
(2) करण तत्पुरुष मनचाहा मन से चाहा
(3) संप्रदान तत्पुरुष रसोईघर रसोई के लिए घर
(4) अपादान तत्पुरुष देशनिकाला देश से निकाला
(5) संबंध तत्पुरुष गंगाजल गंगा का जल
(6) अधिकरण तत्पुरुष नगरवास नगर में वास

(क) नञ तत्पुरुष समास

जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास-विग्रह
असभ्य    -             न सभ्य 
अनंत      -             न अंत
अनादि    -             न आदि 
असंभव  -             न संभव

(ख) कर्मधारय समास

जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्ववद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समात विग्रह
चंद्रमुख चंद्र जैसा मुख कमलनयन कमल के समान नयन
देहलता देह रूपी लता दहीबड़ा दही में डूबा बड़ा
नीलकमल नीला कमल पीतांबर पीला अंबर (वस्त्र)
सज्जन सत् (अच्छा) जन नरसिंह नरों में सिंह के समान


(ग) द्विगु समास

जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे-
समस्त पद समात-विग्रह समस्त पद समास विग्रह
नवग्रह नौ ग्रहों का मसूह दोपहर दो पहरों का समाहार
त्रिलोक तीनों लोकों का समाहार चौमासा चार मासों का समूह
नवरात्र नौ रात्रियों का समूह शताब्दी सौ अब्दो (सालों) का समूह
अठन्नी आठ आनों का समूह



3. द्वंद्व समास

जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास-विग्रह
पाप-पुण्य पाप और पुण्य अन्न-जल अन्न और जल
सीता-राम सीता और राम खरा-खोटा खरा और खोटा
ऊँच-नीच ऊँच और नीच राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण


4. बहुव्रीहि समास

जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह
दशानन दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीतांबर पीले है अम्बर (वस्त्र) जिसके अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदर लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
दुरात्मा बुरी आत्मा वाला (कोई दुष्ट)
श्वेतांबर श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती

संधि और समास में अंतर

संधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे-देव+आलय=देवालय। समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे-माता-पिता=माता और पिता।
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर- कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे-नीलकंठ=नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे-नील+कंठ=नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।

sandhi - संधि

19. संधि (sandhi)

संधि :-
संधि शब्द का अर्थ है मेल। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है। 
जैसे-सम्+तोष=संतोष। 
देव+इंद्र=देवेंद्र। 
भानु+उदय=भानूदय।
संधि के भेद-
संधि तीन प्रकार की होती हैं-
1. स्वर संधि (swar sandhi)
2. व्यंजन संधि।
3. विसर्ग संधि।

1. स्वर संधि

दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं। जैसे-विद्या+आलय=विद्यालय।
स्वर-संधि पाँच प्रकार की होती हैं-

(क) दीर्घ संधि

ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई, और ऊ हो जाते हैं। जैसे-
(क) अ+अ=आ 
धर्म+अर्थ=धर्मार्थ, 
अ+आ=आ
हिम+आलय=हिमालय।
आ+अ=आ
विद्या+अर्थी=विद्यार्थी 
आ+आ=आ
विद्या+आलय=विद्यालय।
(ख) इ और ई की संधि-
इ+इ=ई- 
रवि+इंद्र=रवींद्र, 
मुनि+इंद्र=मुनींद्र।
इ+ई=ई- 
गिरि+ईश=गिरीश 
मुनि+ईश=मुनीश।
ई+इ=ई- 
मही+इंद्र=महींद्र 
नारी+इंदु=नारींदु
ई+ई=ई- 
नदी+ईश=नदीश 
मही+ईश=महीश
(ग) उ और ऊ की संधि-
उ+उ=ऊ- 
भानु+उदय=भानूदय 
विधु+उदय=विधूदय
उ+ऊ=ऊ- 
लघु+ऊर्मि=लघूर्मि 
सिधु+ऊर्मि=सिंधूर्मि
ऊ+उ=ऊ- 
वधू+उत्सव=वधूत्सव 
वधू+उल्लेख=वधूल्लेख
ऊ+ऊ=ऊ- 
भू+ऊर्ध्व=भूर्ध्व 
वधू+ऊर्जा=वधूर्जा

(ख) गुण संधि

इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए, उ, ऊ हो तो ओ, तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं जैसे-
(क) अ+इ=ए- 
नर+इंद्र=नरेंद्र 
अ+ई=ए- 
नर+ईश=नरेश
आ+इ=ए- 
महा+इंद्र=महेंद्र 
आ+ई=ए महा+ईश=महेश
(ख) अ+ई=ओ 
ज्ञान+उपदेश=ज्ञानोपदेश 
आ+उ=ओ 
महा+उत्सव=महोत्सव
अ+ऊ=ओ 
जल+ऊर्मि=जलोर्मि 
आ+ऊ=ओ महा+ऊर्मि=महोर्मि
(ग) अ+ऋ=अर् 
देव+ऋषि=देवर्षि
(घ) आ+ऋ=अर् 
महा+ऋषि=महर्षि

(ग) वृद्धि संधि

अ आ का ए ऐ से मेल होने पर ऐ अ आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे-
(क) अ+ए=ऐ 
एक+एक=एकैक 
अ+ऐ=ऐ 
मत+ऐक्य=मतैक्य
आ+ए=ऐ 
सदा+एव=सदैव 
आ+ऐ=ऐ 
महा+ऐश्वर्य=महैश्वर्य
(ख) अ+ओ=औ 
वन+ओषधि=वनौषधि 
आ+ओ=औ 
महा+औषध=महौषधि
अ+औ=औ 
परम+औषध=परमौषध 
आ+औ=औ 
महा+औषध=महौषध

(घ) यण संधि

(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है। 
(ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है। 
(ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
इ+अ=य्+अ 
यदि+अपि=यद्यपि 
ई+आ=य्+आ 
इति+आदि=इत्यादि।
ई+अ=य्+अ 
नदी+अर्पण=नद्यर्पण 
ई+आ=य्+आ 
देवी+आगमन=देव्यागमन
(घ) उ+अ=व्+अ 
अनु+अय=अन्वय 
उ+आ=व्+आ 
सु+आगत=स्वागत
उ+ए=व्+ए 
अनु+एषण=अन्वेषण 
ऋ+अ=र्+आ 
पितृ+आज्ञा=पित्राज्ञा
(ड़) अयादि संधि- 
ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं।
(क) ए+अ=अय्
ने+अन=नयन 
(ख) ऐ+अ=आय्
 गै+अक=गायक
(ग) ओ+अ=अव् 
पो+अन=पवन 
(घ) औ+अ=आव्
पौ+अक=पावक
औ+इ=आव्
नौ+इक=नाविक

2. व्यंजन संधि

व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। जैसे-शरत्+चंद्र=शरच्चंद्र।
(क) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। जैसे-
क्+ग=ग्ग 
दिक्+गज=दिग्गज। 
क्+ई=गी 
वाक्+ईश=वागीश
च्+अ=ज् 
अच्+अंत=अजंत 
ट्+आ=डा 
षट्+आनन=षडानन
प+ज=ब्ज 
अप्+ज=अब्ज
(ख) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे-
क्+म=ड़् 
वाक्+मय=वाड़्मय 
च्+न=ञ् 
अच्+नाश=अञ्नाश
ट्+म=ण् 
षट्+मास=षण्मास 
त्+न=न् 
उत्+नयन=उन्नयन
प्+म्=म् 
अप्+मय=अम्मय
(ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैसे-
त्+भ=द्भ 
सत्+भावना=सद्भावना 
त्+ई=दी 
जगत्+ईश=जगदीश
त्+भ=द्भ 
भगवत्+भक्ति=भगवद्भक्ति 
त्+र=द्र तत्+रूप=तद्रूप
त्+ध=द्ध 
सत्+धर्म=सद्धर्म
(घ) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है। जैसे-
त्+च=च्च 
उत्+चारण=उच्चारण 
त्+ज=ज्ज सत्+जन=सज्जन
त्+झ=ज्झ 
उत्+झटिका=उज्झटिका 
त्+ट=ट्ट तत्+टीका=तट्टीका
त्+ड=ड्ड 
उत्+डयन=उड्डयन 
त्+ल=ल्ल 
उत्+लास=उल्लास
(ड़) त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है। जैसे-
त्+श्=च्छ 
उत्+श्वास=उच्छ्वास 
त्+श=च्छ 
उत्+शिष्ट=उच्छिष्ट
त्+श=च्छ 
सत्+शास्त्र=सच्छास्त्र
(च) त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है। जैसे-
त्+ह=द्ध 
उत्+हार=उद्धार 
त्+ह=द्ध 
उत्+हरण=उद्धरण
त्+ह=द्ध 
तत्+हित=तद्धित
(छ) स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। जैसे-
अ+छ=अच्छ 
स्व+छंद=स्वच्छंद 
आ+छ=आच्छ 
आ+छादन=आच्छादन
इ+छ=इच्छ 
संधि+छेद=संधिच्छेद 
उ+छ=उच्छ 
अनु+छेद=अनुच्छेद
(ज) यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। जैसे-
म्+च्=ं 
किम्+चित=किंचित 
म्+क=ं 
किम्+कर=किंकर
म्+क=ं 
सम्+कल्प=संकल्प 
म्+च=ं 
सम्+चय=संचय
म्+त=ं 
सम्+तोष=संतोष 
म्+ब=ं सम्+बंध=संबंध
म्+प=ं 
सम्+पूर्ण=संपूर्ण
(झ) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। जैसे-
म्+म=म्म 
सम्+मति=सम्मति 
म्+म=म्म 
सम्+मान=सम्मान
(ञ) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। जैसे-
म्+य=ं 
सम्+योग=संयोग 
म्+र=ं 
सम्+रक्षण=संरक्षण
म्+व=ं 
सम्+विधान=संविधान 
म्+व=ं 
सम्+वाद=संवाद
म्+श=ं 
सम्+शय=संशय 
म्+ल=ं 
सम्+लग्न=संलग्न
म्+स=ं 
सम्+सार=संसार
(ट) ऋ,र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। जैसे-
र्+न=ण 
परि+नाम=परिणाम 
र्+म=ण 
प्र+मान=प्रमाण
(ठ) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है। जैसे-
भ्+स्=ष 
अभि+सेक=अभिषेक 
नि+सिद्ध=निषिद्ध 
वि+सम=विषम

3. विसर्ग-संधि

विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग-संधि कहते हैं। जैसे-मनः+अनुकूल=मनोनुकूल।

(क) विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है। जैसे-
मनः+अनुकूल=मनोनुकूल 
अधः+गति=अधोगति 
मनः+बल=मनोबल

(ख) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है। जैसे-
निः+आहार=निराहार 
निः+आशा=निराशा 
निः+धन=निर्धन

(ग) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। जैसे-
निः+चल=निश्चल 
निः+छल=निश्छल 
दुः+शासन=दुश्शासन

(घ)विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। जैसे-
नमः+ते=नमस्ते 
निः+संतान=निस्संतान 
दुः+साहस=दुस्साहस

(ड़) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। जैसे-
निः+कलंक=निष्कलंक 
चतुः+पाद=चतुष्पाद 
निः+फल=निष्फल

(ड)विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-
निः+रोग=निरोग 
निः+रस=नीरस

(छ) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। जैसे-
अंतः+करण=अंतःकरण